राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy)-Van Daroga Special Notes-Rastriya Van Niti Upsssc Van Daroga Mains Exam 2023

राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy)-Van Daroga Special Notes-Rastriya Van Niti Upsssc Van Daroga Mains Exam 2023

National Forest Policy (राष्ट्रीय वन नीति)-Van Daroga Special Notes
National Forest Policy (राष्ट्रीय वन नीति)-Van Daroga Special Notes

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वन दरोगा Special Classes

Chapter-01

राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy)



इस चैप्टर में हम पढ़ेंगे- 
राष्ट्रीय वन नीति
राष्ट्रीय वन नीति के मुख्य लक्ष्य 
वनों का वर्गीकरण
वन-महोत्सव (Van-Mahotsava)
राष्ट्रीय वन आयोग ( National Forest Commission )
वनों से सम्बंधित प्रमुख अनुच्छेद एवं अनुसूची
समन्वित वन सुरक्षा योजना (Integrated Forest Protection Scheme)
हरियाली परियोजना ( Hariyali Project)
राष्ट्रीय वनारोपण एवं पारिस्थितिकी विकास बोर्ड
झूम कृषि (slash-and-burn farming)
सयुंक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम
भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2021
शीर्ष वनावरण वाले राज्य
मैंग्रोव वन की स्थिति
कार्बन स्टॉक
बाँस वन क्षेत्र, वन अनुसंधान केंद्र
टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में वन आवरण
महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
प्रकृति के महत्वपूर्ण दिवस



राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy)

वर्तमान में वनों के संरक्षण एवं विकास के लिए राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy) को अपनाया गया है ।

भारत में सबसे पहले 1894 ई. में वन नीति अपनाई गई थी।

स्वतंत्रता के बाद  में वन नीति 1894 को परिवर्तन किया गया और 31 मई 1952 को नई वन नीति घोषित की गयी जिसके अनुसार भूमि के 33% (मैदानी भागों में 20% तथा पर्वतीय क्षेत्रों में 60%) भाग पर वन होने चाहिए ।

1952 की नीति को भारत सरकार द्वारा संकल्प संख्या 3-1/1986-एफपी दिनांक 7 दिसंबर, 1988 के अनुसार संशोधित किया गया था। 1988 की नई राष्ट्रीय वन नीति संरक्षण और स्थानीय जरूरतों को पूरा करने पर जोर देने के साथ 1952 वन नीति से बदली गयी ।

राष्ट्रीय वन नीति, 1988 (एनएफपी) का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण का पारिस्थितिक संतुलन की स्थिरता और रखरखाव सुनिश्चित करना है।

यह नीति बड़े पैमाने पर उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महिलाओं सहित लोगों की भागीदारी पर जोर देती है

Note-1988 में घोषित वन नीति को क्रियाशील बनाने के लिए अगस्त, 1999 में एक 20 वर्षीय दीर्घकालीन राष्ट्रीय वानिकी कार्य योजना लागू की गई जिसका उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना तथा देश के एक - तिहाई भाग को वृक्षों / वनों से आच्छादित करना है ।


राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के मुख्य लक्ष्य इस प्रकार है-

·        पारिस्थितिकीय सन्तुलन के संरक्षण और पुनर्स्थापना द्वारा पर्यावरण सन्तुलन को बनाए रखना,

·        प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण

·        नदियों, झीलों और जलाशयों के जलग्रहण क्षेत्र में भूमि कटावा और वनों के क्षरण पर नियन्त्रण,

·        राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों तथा तटवर्ती क्षेत्रों में रेत के टीलों के विस्तार को रोकना,

·        व्यापक वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के माध्यम से वन - वृक्षो के आच्छादन मे महत्त्वपूर्ण वृद्धि करना

·        ग्रामीण और आदिवासी जनसंख्या के लिए ईंधन की लकड़ी, चारा तथा अन्य छोटी - मोटी वन उपज आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कदम उठाना,

·        राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन उत्पादों में वृद्धि,

·        वन उत्पादों के सही उपयोग को बढ़ावा देना और लकड़ी का अनुकूलतम विकल्प खोजना और

·        इन उद्देश्य की पूर्ति और वर्तमान वनो पर दबाव कम करने के लिए बड़े पैमाने पर आम जनता विशेषकर महिलाओं का अधिकतम सहयोग प्राप्त करना ।




वन नीति के अनुसार वनों का वर्गीकरण
वन नीति के अनुसार भारतीय वनों को निम्न चार भागों में बाँटा गया है -

( 1 ) सुरक्षित वन ( Protected Forests ) -(पारिस्थितिक तंत्र के आवश्यक वन)
ये वे वन है जो राष्ट्र की भौतिक एवं पर्यावरणीय आश्यकताओं के लिए आवश्यक है । इन्हें संरक्षित वन भी कहा जाता है ।इनकी मौजूदगी अधिकांशत: पहाड़ी क्षेत्रों, नदी - घाटियो, तटीय भागों में है ।
इन वनों को न केवल सरकार की ओर से सुरक्षा प्रदान की गई है वरन जहाँ कहीं इनमें कमी आई है वहाँ सुधार के लिए वृक्षारोपण भी किया जाता है ।

( 2 ) राष्ट्रीय वन ( National Forests ) -(ऐसे वन जिसका उपयोग आर्थिक गतिविधियों में किया जा सके)
देश की सुरक्षा, यातायात, उद्योग तथा सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन वनों की आवश्यकता है ।
ऐसे वनों में इमारती काष्ठ की खेती एवं अविचारपूर्ण विदोहन आदि पर रोक लगाई गई है ।


( 3 ) ग्राम्य वन ( Village Forests ) -(ग्रामीण क्षेत्र की जरूरतों की पूर्ति करने वाले वन)
इनका महत्त्व गांवों और निकटवर्ती नगरों के लिए सस्ते ईंधन की उपलब्धि कराना है जिससे गोबर के कण्डे आदि का ईंधन के रूप में प्रयोग रोका जा सके एवं खेतों में खाद के रूप में व्यवहत किया जा सके ।
साथ ही इन वनों से कृषि - यन्त्रों एवं अन्य ग्रामीण आवश्यकताओं के लिए सीमित मात्रा में लकड़ी ग्रामवालों को मिलती है ।

( 4 ) वृक्ष वन ( Tree Lands ) -इन वनों का विकास देश की भौतिक आवश्यकताओं के लिए किया जाता है । इन्हें रोपित वन भी कहा जाता है ।
इन्हें पूर्व बन्य क्षेत्रों, परती एवं बंजर भूमि तथा खाली पड़ी भूमि में लगाया जाता है ।


वन-महोत्सव ( Van-Mahotsava ) 

सन् 1952 की वन नीति के अनुसार जुलाई 1952 से भारत सरकार ने वन-महोत्सव (Van-Mahotsava) मनाना आरम्भ किया है ।

प्रतिवर्ष जुलाई - अगस्त मास में वृक्षारोपण सप्ताह मनाया जाता है ।

वन महोत्सव आन्दोलन का मूल आधार है -"वृक्ष का अर्थ जल है, जल का अर्थ रोटी है और रोटी ही जीवन है।"


राष्ट्रीय वन आयोग ( National Forest Commission )

वनों और वन-जीवन क्षेत्र के कामकाज की समीक्षा कर इसमें सुधार के सुझाव देने हेतु राष्ट्रीय वन आयोग का गठन पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी ० एन ० कृपाल की अध्यक्षता में 7 फरवरी, 2003 को वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय द्वारा किया गया था ।

आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी ० एन ० कृपाल ने 26 मार्च, 2006 को अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपी ।

·       रिपोर्ट में आयोग ने प्रत्येक राज्य की अलग वन नीति बनाए जाने की सिफारिश की है ।

·       पर्यावरण को साफ - सुथरा रखने व वन्य जीवों के पर्यावास के आधार पर वनों व आच्छादित वनों को बढ़ाने पर राष्ट्रीय वन आयोग ने विशेष बल दिया है । रिपोर्ट के अनुसार जल की उपलब्धता वनों पर ही निर्भर है, जबकि नदियों के प्रवाह क्षेत्र का भी सम्बन्ध बनो से है ।

·       इस आधार पर उद्योगों के कारण वनों व जल को होने वाली क्षति की भरपाई के लिए उन पर लगने वाले उपकर को 2 के स्थान पर 4 प्रतिशत किए जाने की सिफारिश की गई है । साथ ही उसका आधा भाग सम्बन्धित राज्य के वन विभाग को मिलना चाहिए ।

·       यदि ऐसा नहीं होता तो भी उद्योगों से अभी 2 प्रतिशत वसूले जाने वाले उपकर में से ही राज्यों को उसका आधा भाग दिए जाने की सिफारिश की है ।



वनों से सम्बंधित प्रमुख अनुच्छेद एवं अनुसूची

अनु 48A-“राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार और देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।”

अनु-51A (g)-वनों, झीलों, नदियों एवं वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण को महत्व देना, उसकी रक्षा करना एवं उसमें संवर्धन करना तथा  प्राणी मात्र (जीवित प्राणियों) के प्रति दया भाव रखना।

अनुसूची VII-इसके तहत वन जंगली जानवर तथा पक्षियों के संरक्षण को समवर्ती सूची में शामिल किया गया है।




समन्वित वन सुरक्षा योजना ( Integrated Forest Protection Scheme )

वनों की आग की रोकथाम और प्रबन्धन तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र और सिक्किम में वन क्षेत्र का विकास सम्बन्धी दो योजनाओं को मिलाकर समन्वित वन सुरक्षा योजना तैयार की गई है ।

·       इस योजना के अंतर्गत केन्द्र सरकार 100 प्रतिशत वित्तीय अनुदान देती है ।

·       यह योजना दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत देश के सभी राज्यो एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में लागू की गई है।

·       इस योजना के अंतर्गत दो योजनाओं को सम्मिलित किया गया है ।

 

हरियाली परियोजना ( Hariyali Project )

27 जनवरी, 2003 से प्रारम्भ हरियाली परियोजना के अंतर्गत ग्रामीणों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ।

·       वृक्ष लगाने वाले व्यक्ति को वनरक्षक के रूप में नियुक्त कर पंचायत के माध्यम से 100 रुपए प्रति माह का पारितोषिक उसे प्रदान किया जाता है ।

·       एक माह के पश्चात् इनमें से 75 या अधिक वृक्ष जीवित रहने पर उस वनकर्मी पर पारितोषिक तीन गुना कर दिया जाता है ।

·       50 से 75 तक वृक्ष जीवित रहने पर इसे दोगुना किया जाता है । वनरक्षक यदि 50 या इससे कम पौधों को ही जीवित रख पाने में सफल रहता है, तो उसे इस पद से हटा दिया जाता है ।

 

हरियाली परियोजना के उद्देश्य -

  • ·       जल संग्रहण योजनाओं का क्रियान्वयन
  • ·       वर्षा जल का संचयन
  • ·       पेयजल समस्या का निवारण
  • ·       सिंचाई हेतु जल की व्यवस्था
  • ·       वृक्षारोपण तथा मत्स्यपालन को प्रोत्साहन ।



राष्ट्रीय वनारोपण एवं पारिस्थितिकी विकास बोर्ड ( National Afforestation and Eco - Development Board )

·       राष्ट्रीय वनारोपण और पारिस्थितिकी विकास बोर्ड की स्थापना 1992 में की गई ।

·       इसके उत्तरदायित्वों में देश में वनारोपण, पारिस्थितिकी कायम रखना तथा पारिस्थितिकी विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना सम्मिलित है ।

·       इस बोर्ड ने वनारोपण को प्रोत्साहित करने और प्रबन्धन की रणनीति तैयार करने के लिए विशेष योजनाएँ तैयार की हैं ।

·       इससे राज्यों को निर्धारित क्षेत्र में वनारोपण व संयुक्त वन प्रबन्धन की भागीदारी योजना प्रक्रिया के द्वारा बायोमास उत्पादन बढ़ाने के लिए पारिस्थितिकी विकास पैकेज तैयार करने में मदद मिलती है ।

·       सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से राष्ट्रीय वनारोपण कार्यक्रम - दसवीं पंचवर्षीय योजना में प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्यों में 25 प्रतिशत वनारोपण और वृक्षारोपण का लक्ष्य भी सम्मिलित है ।

·       पूर्वोत्तर राज्यों में अधिकांश परियोजनाएँ झूम खेती ( स्थानान्तरित कृषि ) के लिए अमल में लाई जा रही है ।



झूम कृषि

झूम कृषि (slash-and-burn farming) एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। कुछ वर्षों तक (प्रायः दो या तीन वर्ष तक) जब तक मिट्टी में उर्वरता विद्यमान रहती है इस भूमि पर खेती की जाती है। इसके पश्चात् इस भूमि को छोड़ दिया जाता है जिस पर पुनः पेड़-पौधें उग आते हैं। अब अन्यत्र जंगली भूमि को साफ करके कृषि के लिए नई भूमि प्राप्त की जाती है और उस पर भी कुछ ही वर्ष तक खेती की जाती है। इस प्रकार यह एक स्थानानंतरणशील कृषि (shifting cultivation) है जिसमें थोड़े-थोड़े समय के अंतर पर खेत बदलते रहते हैं। भारत की पूर्वोत्तर पहाड़ियों में आदिम जातियों द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं। इस प्रकार की स्थानांतरणशील कृषि को श्रीलंका में चेना, हिन्देसिया में लदांग और रोडेशिया में मिल्पा कहते हैं।अक्सर यह दावा किया जाता रहा है कि झूम के कारण क्षेत्र के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान हुआ है।


सयुंक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम

·       इस अवधारणा को भारत सरकार ने राष्ट्रीय वन निति 1988 के माध्यम से 1990 में शुरू किया।

·       अब तक 28 राज्यों में सयुंक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए।

·       ओडिशा राज्य ने संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास किया।

·       वन विभाग के अंतर्गत 'संयुक्त वन प्रबंधन' क्षारित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है।

·       इसके अन्तर्गत ग्रामीण समुदायों को निकटवर्ती वनों के संरक्षण और प्रबंधन का कार्य सौंपा जाता है।

·       इन समुदायों को वनो में अपनी सेवाएं देने हेतु लघु गैर काष्ठ उत्पाद प्राप्त होते है।



भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2021

13 जनवरी‚ 2022 को केंद्रीय पर्यावरण‚ वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने 17वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट (17th India State of Forest Report)‚ 2021 जारी की।

 

इस रिपोर्ट की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं-

·       देश में कुल वन और वृक्षावरण (Forest and Tree Cover) 8,09,537 वर्ग किमी. है‚ जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 प्रतिशत है।

·       देश में कुल वनावरण 7,13,789 वर्ग किमी. है‚ जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71 प्रतिशत है।

·       देश में वन और वृक्षावरण की स्थिति में वर्ष 2019 की तुलना में 2,261 वर्ग किमी. की वृद्धि (0.28 प्रतिशत) हुई है।

·       इसमें से वनावरण में 1,540 (0.22 प्रतिशत) वर्ग किमी. और वृक्षावरण क्षेत्र में 721 वर्ग किमी. (0.76 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है।

 

वनावरण में सर्वाधिक वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष 5 राज्य हैं-

·       तेलंगाना (3.07%)

·       आंध्र प्रदेश (2.22%)

·       ओडिशा (1.04%)

·       कर्नाटक

·       झारखंड

 

वनावरण में सर्वाधिक कमी दिखाने वाले शीर्ष 5 राज्य हैं

·       अरुणाचल प्रदेश

·       मणिपुर

·       मेघालय

·       मिज़ोरम

·       नगालैंड

 

क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वनावरण वाले 5 राज्य हैं-

·       मध्य प्रदेश (77,492.60) (25.14 प्रतिशत)

·       अरुणाचल प्रदेश (66,430.67 वर्ग किमी.) (79.33 प्रतिशत)

·       छत्तीसगढ़ (55, 716.60 वर्ग किमी.)(41.21 प्रतिशत)

·       ओडिशा (52,155.95 वर्ग.किमी.)(33.50 प्रतिशत)

·       महाराष्ट्र (50,797.76 वर्ग किमी.) (16.51 प्रतिशत)

 

सर्वाधिक वनावरण प्रतिशतता वाले 5 राज्य हैं-

·       मिजोरम (84.53 प्रतिशत)

·       अरुणाचल प्रदेश (79.33 प्रतिशत)

·       मेघालय (76.00 प्रतिशत)

·       मणिपुर (74.34 प्रतिशत)

·       नगालैंड (73.90 प्रतिशत)

 

मैंग्रोव वन की स्थिति-

नवीनतम आकलन के अनुसार, देश में कुल मैंग्रोव आच्छादन 4992 वर्ग किमी. है। वर्ष 2019 के पिछले आकलन की तुलना में मैंग्रोव आच्छादन में 17 वर्ग किमी. की वृद्धि दर्ज की गई है।

सर्वाधिक मैंग्रोव वन क्षेत्र वाला राज्य प. बंगाल (42.33%) है। इसके बाद सर्वाधिक मैंग्रोव वन क्षेत्र क्रमशः गुजरात (23.54%), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (12.34) तथा आंध्र प्रदेश (8.11%) में है।

मैंग्रोव आच्छादन में वृद्धि दर्शाने वाले शीर्ष तीन राज्य; ओडिशा (8 वर्ग किमी.), महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी.) तथा कर्नाटक (3 वर्ग किमी.) हैं।



कार्बन स्टॉक-

देश के वनों में वर्ष 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। वर्तमान में कार्बन स्टॉक 7204 मिलियन टन अनुमानित है।

कार्बन स्टॉक– वन क्षेत्र बड़ी मात्रा में वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड का अवशोषण करते हैं। अत: वन में कार्बनिक या अकार्बनिक रूप में जो कार्बन मौजूद होता है, उसे कार्बन स्टॉक कहते हैं। जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक तापन को कम करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।


बाँस वन क्षेत्र : बाँस की संख्या 13,882 से बढ़कर वर्ष 2021 में 53,336 बाँस हो गई है।



टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में वन आवरण:

आईएफएसआर 2021 में भारत के टाइगर रिजर्व,  गलियारे एवं सिंह (शेर) संरक्षण क्षेत्र में वन आवरण के आकलन से संबंधित एक नया अध्याय सम्मिलित किया गया है।

विगत दशक में 52 बाघ अभ्यारण्यों में वनावरण में कुल कमी 62 वर्ग किलोमीटर (वर्ग किमी) रही है।

52 बाघ अभ्यारण्यों में से लगभग 20 में वृद्धि की प्रवृत्ति प्रदर्शित की है।

 

वन क्षेत्र में वृद्धि प्रदर्शित करने वाले शीर्ष तीन टाइगर रिजर्व–

·       बक्सा (पश्चिम बंगाल)- 80 वर्ग किमी

·       अन्नामलाई (तमिलनाडु)- 78 वर्ग किमी एवं

·       इंद्रावती (छत्तीसगढ़) – 48 वर्ग किमी


सामाजिक वानिकी

सामाजिक वानिकी के तहत सार्वजनिक व निजी भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया जाता है । इस हेतु प्रथम सुझाव 1976 में 'राष्ट्रीय कृषि आयोग' द्वारा दिया गया था ।

इस कार्यक्रम की शुरुआत 1978 में हुई और 1980 में यह छठी पंचवर्षीय योजना का अंग बन गया । 


कृषि वानिकी

'कृषि वानिकी' का अर्थ है- एक ही भूमि पर कृषि फसल एवं वृक्ष प्रजाति को विधिपूर्वक रोपित कर दोनों प्रकार की उपज लेकर आय बढ़ाना ।

 

शहरी वानिकी

 शहरों और उनके इर्द-गिर्द निजी व सार्वजनिक भूमि, जैसे-हरित पट्टी, पार्क, सड़कों के साथ औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों पर वृक्ष लगाना और उनका प्रबंधन शहरी वानिकी के अंतर्गत आता है ।

 

फार्म वानिकी

इसके अंतर्गत किसानों को खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले व अन्य पेड़ों को लगाने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है ।

वन विभाग इसके लिये किसानों को नि: शुल्क पौधे उपलब्ध करवाता है


कुछ वन अनुसंधान केंद्र

  • ·       इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी-देहरादून (उत्तराखंड)
  • ·       भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान-बंगलूरू (कर्नाटक)
  • ·       भारतीय वन प्रबंधन संस्थान-भोपाल (मध्य प्रदेश)
  • ·       भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्-देहरादून (उत्तराखंड)
  • ·       जी. बी. पंत हिमालयन पर्यावरण और विकास संस्थान-अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
  • ·       उष्ण कटिबंधीय वनस्पति बागान और अनुसंधान संस्थान-तिरूवनंतपुरम (केरल)
  • ·       इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट-नई दिल्ली
  • ·       राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय-नई दिल्ली


प्रकृति के महत्वपूर्ण दिवस

  • §  2015 में भारत सरकार ने नदी संरक्षण वर्ष तथा UNO ने अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष के रूप में मनाया है ।
  • §  सन 2010 से 2020 को UNO द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मरुस्थलीकरण के विरुद्ध दशक घोषित किया है ।
  • §  भारत में 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस जे रूप में मनाया जाता है ।
  • §  18 अप्रेल को विश्व विरासत दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  3 मार्च को विश्व वन्य जीव दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  8 जून को विश्व महासागर दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  14 फरवरी को राष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  16 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  9 सितम्बर को हिमालय दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
  • §  1 – 7 अक्टूबर को वन्य प्राणी सप्ताह के रूप में मनाया जाता है ।


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कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर


Q.1 राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए न्यूनतम वन कवर क्या है?

 

Ans.1 राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार, पर्यावरण संतुलन हेतु न्यूनतम वन क्षेत्र देश के कुल भूमि क्षेत्र का 33% है।

 

Q.2 दिसंबर 1988 में पारित वन नीति का मुख्य उद्देश्य क्या था?

 

Ans.2 वन नीति का मुख्य उद्देश्य संरक्षण के माध्यम से पर्यावरण स्थिरता को बनाए रखना है और यदि आवश्यक हो, तो पारिस्थितिक संतुलन की बहाली जो कि वनों की पर्याप्त कमी से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है

 

Q.3 नवीनतम राष्ट्रीय वन नीति कब शुरू की गई थी?

 

Ans.3 नवीनतम राष्ट्रीय वन नीति 1988 दिसंबर 1988 में शुरू की गई थी।

 

Q.4 पहली राष्ट्रीय वन नीति किस वर्ष शुरू की गई थी?

 

Ans.4 ब्रिटिश शासन के दौरान 1894 में पहली राष्ट्रीय वन नीति शुरू की गई थी। 1952 में, स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति शुरू की गई थी।

 

Q.5 भारत में वर्तमान वन आवरण क्या है?

 

Ans.5 भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR – 2021) के अनुसार, भारत में वर्तमान वन आवरण 7,13,789 km2 है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है।



प्रमुख तथ्य-

§  उत्तर प्रदेश में कुल वनावरण 14,817.89 वर्ग किमी. (6.15 प्रतिशत) है।

§  देश में कुल मैंग्रोव कवर 4,992 वर्ग किमी. है‚ जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15 प्रतिशत है।

§  देश के सर्वाधिक मैंग्रोव आच्छादित 4 राज्य/संघीय क्षेत्र क्रमश: पश्चिम बंगाल (42.33 प्रतिशत)‚ गुजरात (23.54 प्रतिशत)‚ अंडमान निकोबार द्वीप समूह (12.34 प्रतिशत) तथा आंध्र प्रदेश (8.11 प्रतिशत) हैं।

§  मैंग्रोव क्षेत्र में वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष तीन राज्य ओडिशा (8 वर्ग किमी.)‚ महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी.) तथा कर्नाटक (3 वर्ग किमी.) हैं।

§  देश के वनों में कुल कॉर्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है और 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कॉर्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है।

§  कॉर्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन है।

§  ISFR-2021 में भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) ने भारत के टाइगर रिजर्र्व‚ कॉरिडोर और शेर संरक्षण क्षेत्र में वन आवरण के आकलन से संबंधित एक नया अध्याय शामिल किया है।

§  इसमें एफएसआई की नई पहल के तहत एक नया अध्याय जोड़ा गया है‚ जिसमें ‘जमीन से ऊपर बायोमास’ का अनुमान लगाया गया है।

§  एफएसआई ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेव्नâोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी के गोवा कैंपस के सहयोग से भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट की मैपिंग पर आधारित एक अध्ययन किया।

§  यह सहयोगात्मक अध्ययन भविष्य की तीन समय अवधियों यानी वर्ष 2030, 2050 और 2085 के लिए तापमान और वर्षा डेटा पर कंप्यूटर-आधारित अनुमान का उपयोग करते हुए भारत में वनावरण पर जलवायु हॉटस्पॉट का मानचित्रण करने के उद्देश्य से सहयोगात्मक अध्ययन किया गया था।

§  रिपोर्ट में पहाड़ी‚ आदिवासी जिलों और उत्तर पूर्वी क्षेत्र में वनावरण पर विशेष विषयगत जानकारी भी अलग से दी गई है।

§  ज्ञातव्य है कि देहरादून स्थित भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) द्वारा प्रत्येक 2 वर्ष पर सुदूर संवेदन (Remote Sensing) आधारित उपग्रह चित्रण के माध्यम से देश में वनों एवं वृक्षों की स्थिति पर ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट जारी की जाती है।

§  इसका प्रकाशन वर्ष 1987 से किया जा रहा है।

§  राष्ट्रीय वन नीति‚ 1988 के अनुसार‚ देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33 प्रतिशत भू-भाग वृक्षावरण से आच्छादित होना चाहिए।


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