कला विषय के प्रमुख चित्रकार एवं समसामायिक कलाकार-जीवन परिचय-Tgt Pgt Artist Chitrakaar Biography in Hindi

कला विषय के प्रमुख चित्रकार एवं समसामायिक कलाकार-जीवन परिचय-Tgt Pgt Artist Chitrakaar Biography in Hindi




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दोस्तों TGT PGT आर्ट विषय के अंतर्गत यहाँ हम प्रमुख चित्रककारों के जीवन परिचय को पढ़ेंगे। यहाँ हमने बहुत ही संक्षेप में इन चित्रकारों के विषय में बताया है। यहाँ से आपके Exam में 5 से 7 प्रश्न जरूर मिलेंगे।


इसके साथ ही दोस्तों हमने इन चित्रकारों से सम्बंधित महत्वपूर्ण 100 प्रश्न भी अंत में दिया है जिससे आपकी तैयारी और मजबूत हो सके।


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कला विषय के प्रमुख चित्रकार एवं समसामायिक कलाकार-जीवन परिचय


'अवनीन्द्रनाथ ठाकुर'

अवनीन्द्रनाथ का जन्म 1871 में जोडासाँकू के ठाकुर परिवार में हुआ था. रबीन्द्रनाथ उनके चाचा थे. उन्होंने प्रारम्भिक कला शिक्षा इटालियन कलाकार 'गिलहार्डी' से ली. अवनीन्द्रनाथ ने अपनी विशिष्ट चित्रकला को प्रारम्भ किया. अतः कहा जा सकता है कि वह आधुनिक चित्रकला के प्रवर्तक और प्रेरणा स्रोत थे. उन्होंने विद्यापति और चण्डीदास के गीतों के दृष्टान्त-चित्र बनाने आरम्भ किए. राजस्थानी और मुगल

शैली के गम्भीर अध्ययन के पश्चात् उन्होंने 'भारत माता', 'बुद्ध जन्म', 'गणेश जननी', 'बुद्ध और सुजाता', 'महापुराण', 'तिष्य रक्षिता', 'सान्ध्य दीप', 'ताजमहल', 'औरंगजेब और शाहजहाँ की मौत' आदि अनेक चित्र बनाए जिनकी शैली भारतीय थी. इससे प्रेरणा प्राप्त कर उन्होंने अपने बड़े भाई गगनेन्द्रनाथ ठाकुर के सहयोग से 'इण्डियन सोसायटी ऑफ ओरियण्टल आर्ट' नामक एक संस्था की स्थापना की.



नन्दलाल बसु

मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर में 1883 बसु का जन्म हुआ, कलकत्ता कला विद्यालय में ये अवनीन्द्रनाथ के उत्कृष्ट शिष्य रहे. अपनी कला प्रतिभा के कारण ये 1922 में शांति निकेतन में कला विभाग में अध्यक्ष पद पर आसीन हुए. उन्होंने अजन्ता, बाघ आदि गुफाओं के भित्ति चित्रों की सफल प्रतिकृतियाँ उतारी जिससे उनकी ख्याति और भी बढ़ गई. बसु को राष्ट्रीय सम्मान 'पदम् विभूषण' से भी सम्मानित किया गया. 'शिव का विषपान', अर्जुन, दुर्गा, 'युधिष्ठिर की स्वर्ग यात्रा', मेघ, 'उमा की तपस्या', 'वीणावादिनी' आदि उनके उल्लेखनीय चित्र हैं. उन्होंने 'रूपावली' तथा 'शिल्प कला' नामक कला सम्बन्धी पुस्तकों का लेखन भी किया. उन्होंने अपने कला गुरु अवनीन्द्रनाथ की बंगाल शैली एक महानतम् तक पहुँचाया. 
1967 को उनका देहांत हो गया.


असित कुमार हल्दार

असित कुमार हल्दार का जन्म 10 सितम्बर, 1890 को कलकत्ता में हुआ था. बचपन से उनका झुकाव चित्रकला की ओर था. 1906 में अवनीबाबू के शिष्य बने. उस समय के 1964 में उनका देहावसान हो गया.

उनके चित्र बहुत उत्तम कोटि के थे. 1910-11 के मध्य अजन्ता के चित्रों का अध्ययन किया तथा लेडी हैरिंघम के पर्यवेक्षण में चित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार की थीं. नन्दलाल बसु भी उनके साथ गये थे. 1914 में जोगीमारा के चित्रों की प्रतिलिपियाँ तथा 1921 में बाघ के चित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार की. इस प्रकार हल्दार भारतीय चित्र परम्परा से पूर्णतया अवगत हो गये. 1924 में महाराजा स्कूल ऑफ आर्टस्, जयपुर के प्रधानाचार्य बने, लेकिन एक वर्ष बाद उन्हें लखनऊ के कला एवं हस्तशिल्प विद्यालय के आचार्य पद पर आना पड़ा.

हल्दार ने लकड़ी, रेशम, भित्ति, कागज, कैनवास आदि विभिन्न धरातलों पर चित्रण कार्य किया. उन्होंने अपने संयोजनों में सदेव सरलता का ध्यान रखा है. इनके प्रसिद्ध चित्रों में 'मेघदूत' ऋतुसंहार, उमर खय्याम, कुणाल व अकबर तथा 'चौराहे पर' जैसे अनेक चित्र हैं.



देवी प्रसाद राय चौधरी (1899.1975)

आप मद्रास राजकीय कला विद्यालय के प्रधान शिक्षक रहे हैं. आप अवनीन्द्रबाबू के प्रमुख शिष्यों में से थे. बंगाल शैली के कलाकार होने के साथ-साथ प्रसिद्ध मूर्तिकार भी थे. यूरोपीय शैली से काफी प्रभावित रहे. आप यथार्थवादी कलाकार हैं और प्राचीन रूढ़ियों के विरोधी हैं. सामयिक विषयों का अंकन ही अपना लक्ष्य मानते हैं. इन्होंने पूर्व और पश्चिम की शैलियों का समन्वय करने का प्रयत्न किया. व्यक्ति चित्रण इनकी विशेषता रही. दृश्य चित्रों को भी बड़ी सजीवता से उभारते हैं. आपकी प्रसिद्ध कृतियों में 'श्रम की विजय' मुख्य है. इसके अतिरिक्त-कमल सरोवर, 'हरा और सुवर्ण', 'आँधी के पश्चात्', 'निवाण', पुल, महल की गुड़िया, दुर्गा पूजा, शोभा यात्रा, अभिसारिका आदि उल्लेखनीय हैं.



राजा रवि वर्मा (1848-1906)

राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के गाँव 'किलिमन्नूर' में हुआ था. इन्होंने कला की शिक्षा अपने चाचा राजा वर्मा से ही ली. उनके द्वारा व्यक्ति चित्र, दृश्य चित्र, धार्मिक एवं पौराणिक विषयों पर नैसर्गिकतावादी चित्रांकन किया गया. उनके चित्रों का विषय, पात्र एवं पात्रों की वेशभूषा भारतीय ही थी, पात्र व तकनीक यूरोपीय पद्धति का था.

बड़ौदा के दीवान राजा सर माधव राव के परामर्श से रवि वर्मा ने मुम्बई में एक 'लीथोग्राफी तकनीक का मुद्रणालय' स्थापित किया था. जहाँ से छपे उनके चित्र देश के घर-घर में पहुँच गये. इनकी विख्यात कृतियों में-शकुन्तला के प्रेम-पत्र, विश्वामित्र और मेनका, हरिश्चन्द्र, श्रीकृष्ण-बलराम, मोहनी, 'इन्द्रजीत विजय', रावण और जटायु, रुक्मांगदा, मत्स्यगंधी, सन्देशवाहक हंस, पुष्प बालिका, मालावार स्त्री तथा माता व पुत्र आदि. ।



क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार (1891-1975)

क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार बंगाल शैली के 'वैष्णव' चित्रकार इन्होंने कलकत्ता आर्ट स्कूल में अवनीबाबू की इण्डियन थे.


पेंटिंग की कक्षा में ‘बालक ध्रुव की तपस्या' नामक पहला चित्र बनाया जिसे एक अंग्रेज ने अस्सी रुपए में खरीद लिया.

इन्होंने प्रायः राधा-कृष्ण एवं चैतन्य विषयक चित्र बनाए हैं. 1942 में आपको इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कला विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया और वे अन्तिम क्षणों तक वहीं रहे. लयात्मक संयोजन, प्रवाहपूर्ण रेखा और भक्ति विषयक रचनाएं आपकी कला की प्रमुख विशेषता है. आपकी रंग योजना कोमल है. यमुना, अभिसारिका, गीतगोविन्द, चैतन्य, लक्ष्मी तथा पुण्य-प्रचायिका आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं.




अब्दुर्रहमान चगुताई (1897-1975) 

चगुताई अवनी बाबू के ही एक शिष्य थे. अपने फारसी तथा भारतीय शैलियों के मिश्रण से अपनी सर्वथा नवीन और मौलिक शैली का निर्माण किया है. आपकी कला रेखाप्रधान है, रंग योजनाएं भी अपने ढंग की अनोखी हैं. कुछ कला आलोचकों ने उन्हें 'रंगों का सम्राट' कहा है. आपके दो चित्र संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं-नक्स ए-चगुताई तथा मुरक्का-एचगुताईं. इसके अतिरिक्त उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ-सहारा की राजकुमारी, बहनें, प्रिंस सलीम, जंगल में लैला, जीवन, बुझी हुई लौ, गीत की भेंट, जीवन जाल, संन्यासी, राधा-कृष्ण, हीरी मन तोता आदि.




रबीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941)

रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविख्यात कवि होने के साथ- नाटक, संगीत, चित्र तथा नृत्य जैसी सभी कलाओं में पारंगत थे. इनका जन्म 1861 में 'जोड़ा साँकू' कलकत्ता में हुआ शान्ति निकेतन की शुरूआत सन् 1901 में रबीन्द्रनाथ ने की थी. वह चित्रकार के रूप में बहुत देर से सामने आये (65 वर्ष की उम्र में) उन्हें बतौर चित्रकार के शुरू में उचित स्थान नहीं मिल सका, परन्तु बाद में आधुनिक भारतीय चित्रकला के अग्रदूत माने जाने लगे. उनकी कला में कहीं कोई बनावट नहीं थी. शुरू की कृतियों में उन्होंने मात्र काली स्याही का प्रयोग किया है बाद की कृतियों में रंग आच्छादित हो गये. उन्होंने काव्यात्मक विषय सुन्दर मुख, आकर्षक शरीर आदि के स्थान पर सामान्य गैर सुन्दर, बदसूरत विषय, अनाकर्षक शरीर तथा गन्दगी से भरे भयावह दृश्यों को अंकित किया इनकी प्रसिद्ध कृतियों में थके हुए यात्री, माँ व बच्चा, सफेद धागे, प्राचीन कानाफूसी आदि उल्लेखनीय हैं




गगनेन्द्रनाथ ठाकुर (1867-1938)

गगनेन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 1867 में कलकत्ता में हुआ. इन्होंने डॉ. स्टैला क्रैमरिश के प्रभाव में आकार 1923 के लगभग अनेक घनवादी प्रयोग आरम्भ कर दिए. उन्होंने घनवादी तथा स्वप्लिन शैली आदि अनेक शैलियों में चित्र बनाए. चित्रों में पाश्चात्य प्रभाव अधिक है. प्रायः उनके चित्रों में व्यंग और मौज की तरंग है.

बंगाल स्कूल की लीक से हटकर चलने वाले इस प्रथम प्रयोगवादी कलाकार ने 1938 में इस संसार से विदा ले लिया. इनकी प्रसिद्ध कृतियों में-'अर्जुन व चित्रांगदा', द गार्डन ऑफ हिस्ट्री, 'निरूप बज्र', नव लोहार, अद्भुत लोग, 'तुषार धलित', वर्षा, दुर्गा पूजन समारोह, ‘अट्टहास' आदि प्रमुख हैं .



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यामिनी राय (1887-1972)

यामिनी राय का जन्म 1887 में बाँकुड़ा जिले के 'बेलिया तोड़ा' नामक गाँव में हुआ. यामिनी राय को बंगाल के ‘पटचित्रों' ने अत्यधिक प्रभावित किया. इन्होंने 1937 में ईसा के जीवन को चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया. उनकी कला में न विदेशीपन है, न ठाकुर शैली की धूमिल नैराश्य भावना. बंगाल की लोक कला के अनुशीलन से उन्होंने एक सर्वथा मौलिक शैली की उद्भावना की. यामिनी राय को पिकासो कहा जाता है, किन्तु यह अतिश्योक्ति है. पाश्चात्य कला समीक्षकों ने इन्हें भारतीय कला का पैगम्बर भी कहा. यामिनी राय के चित्रों की तुलना प्रायः चाइल्ड आर्ट से की जाती है. क्योंकि इनके चित्रों में वही बाल सुलभ चंचलता, तथा चटख रंगों के प्रति लगाव है, जो एक बालक के चित्रों में होता है. इनकी प्रसिद्ध कृतियों में राधा-कृष्ण और बलराम, गणेश और पार्वती, ईसा व शिष्य, नर्तकी, रामायण का एक दृश्य, तीन स्त्रियाँ, बिल्ली, केकड़ा, मछली, लोमड़ी व हाथी आदि सरलता प्रमुख हैं. .




अमृता शेरगिल (1913-41)

अमृता का जन्म हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में 30 जनवरी, 1913 में हुआ. इनके पिता भारतीय सिख-उमराव सिंह तथा माता मारिया हंगेरियन थी. इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पेरिस में हुई और इन्होंने इटली की कला का अध्ययन किया. वह 1924 में भारत आयीं. अमृता की कला में पूर्व और पश्चिम की शैलियों का बड़ा सुन्दर समन्वय हुआ है जिसका अन्तर्राष्ट्रीय महत्व है. .

वे सेजाँ, गागिन तथा वान गाँग से भी प्रभावित थीं. अतः उन्होंने आकृतियों को सरल बनाया और उन्हें गहरी बुझी रेखाओं से घेरा और सामाजिक यथार्थ का अंकन किया. चित्रों के रंग वेशभूषा, संयोजन, गति एवं मुद्राएं भारतीय हैं. उन्होंने लाल रंग के बहुत अधिक बलों का प्रयोग किया है जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव उत्पन्न करते हैं. उनकी प्रसिद्ध कृतियों में पहाड़ी पुरुष, पहाड़ी स्त्रियाँ, भारतीय माँ, कहानी कथन, बाल वधू, ब्रह्मचारी, फल बेचने वाली, गणेश पूजा, हल्दी पीसती औरतें, सिख गायक, हाथी का स्नान, वधू का शृंगार आदि प्रमुख हैं.


एन. एस. बेन्द्रे (1910-92)

. बेन्द्रे का पूरा नाम नारायण श्रीधर बेन्द्रे है, इनका जन्म 1910 में इन्दौर में हुआ था. बड़ौदा विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय के अध्यक्ष बने. वहाँ से अवकाश लेने के पश्चात् मुम्बई में अपनी चित्र रचना करते रहे. उसके बाद मद्रास की एक फिल्म कम्पनी में कला निर्देशन का कार्य किया. बेन्द्रे के चित्रों में मुख्य घटक वास्तुशिल्पीय रूप, प्रकृति सैर और लोक जीवन की आकृतियाँ हैं. बेन्द्रे ने अपने चित्रों में बिन्दुओं का बहुलता से प्रयोग किया है. इसीलिये उन्हें बिन्दुवादी चित्रकार कहा जाता है. उनके चित्रों की आकृतियाँ शैलीबद्ध हैं. इनमें प्रमुख हैं-प्यास, फल बेचने वाली, लकड़ी काटने वाली, सूरजमुखी, दार्जिलिंग के चाय बागान की युवती, ज्येष्ठ की दोपहर, अमरनाथ तथा कश्मीर के दृश्य उल्लेखनीय हैं.




के. के. हेब्बर (1912-96)

हेब्बर का पूरा नाम ‘कटिंगेरी कृष्ण हेब्बर' है. इनका जन्म 1912 में दक्षिण कन्नड़ के एक गाँव में हुआ. मुगल व राजपूत कला से प्रभावित होकर उनके चित्रों में भारतीय परम्परागत शैली की लयबद्ध रेखा, यथार्थवाद व पाश्चात्य आधुनिक अंकन पद्धतियों का समन्वित रूप है. उनके चित्रों में प्रायः ग्रामीण जीवन के साथ-साथ निर्धनों, श्रमिकों तथा साधारण लोगों के कार्यकलापों का पर्याप्त अंकन हुआ है. इनके प्रसिद्ध चित्रों में-मुर्गे की लड़ाई, ब्रज, श्रीनगर तथा टाइल फैक्ट्री आदि उल्लेखनीय हैं. . -




राम किंकर बैज


राम किंकर बैज का जन्म बांकुड़ा के निकट ‘जुग्गी पाड़ा' में हुआ था. उन्होंने चित्रकला, मूर्तिकार दोनों का अपने स्वभाव के अनुसार विकास किया. वे प्रधानतः मूर्तिकार थे. बैज का जल रंगों का कार्य विनोद मुखर्जी से मिलता जुलता है. उन्होंने संथाल लोग के जीवन तथा वीर भूमि की प्राकृतिक शोभा का ही चित्रण किया है. चित्रों एवं मूर्तियों की अनेक रचनाएं की जिनमें सुजाता, संथाल परिवार, कन्या तथा कुत्ता, अनाज की ओसाई आदि उल्लेखनीय हैं. .



के. सी. एस. पणिक्कर

पणिक्कर का जन्म 1911 में 'कोयम्बटूर' में हुआ. 1944 में पणिक्कर ने प्रोग्रेसिव पेण्टर्स एसोसिएशन की शुरूआत की. उनकी कला में शब्दों, प्रतीकों, आधुनिकता, परम्परा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. इनका कुछ कार्य तांत्रिक कला से मिलता-जुलता है. इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ-आदम और हव्वा, ईसा-बसन्त, पीला चित्र 'धन्य है शान्ति दूत' आदि उल्लेखनीय हैं. .



एम. एफ. हुसैन

समकालीन वरिष्ठ चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन आधुनिक भारतीय चित्रकला के स्तम्भ थे. हुसैन का जन्म शोलापुर (महाराष्ट्र) में 1915 में हुआ था. प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के प्रणेता हुसैन ने सिनेमा होर्डिंग्स के पेन्टर के रूप में कार्य प्रारम्भ किया और आज वह खुद फिल्मों का निर्माण करते थे (गजगामिनी, मीणाक्षी). हमेशा चर्चा और विवादों में बने रहने वाले हुसैन ने ललित कला अकादमी की प्रथम राष्ट्रीय प्रदर्शनी में पहला पुरस्कार प्राप्त किया. 1967 में 'श्रू द आइज ऑफ ए पेण्टर' नामक वृत्तचित्र बनाया जो 1968 में बर्लिन में पुरस्कृत हुआ. भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री' तथा ‘पद्म भूषण' से सम्मानित किया.

बुनियादी तौर पर हुसैन प्रतीकवादी चित्रकार थे. उनकी मानवाकृतियों में एक विशेष प्रकार की विकृति उत्पन्न की गई है. 1948 के लगभग वे यथार्थवादी रहे. फिर धनवाद से सम्पूर्ण विकृति तक धीरे-धीरे पहुँच गये. उन्होंने शृंखलाओं में चित्रों को उतारा. उनकी प्रसिद्ध कृतियों में, स्वास्तिक, ढुलकिया, घोड़े, वापसी, जमीन, मदर टेरेसा, फूलन देवी, मकड़ी, बैलगाड़ी आदि उल्लेखनीय हैं. .




के. एच. आरा

आरा ने विशेष रूप से प्रकृति से सम्बद्ध चित्रों को बड़ी मौलिकता से बनाया है. उनकी कृतियाँ, फल-फूल फारसी लघु चित्रों की याद दिलाते हैं. आरा की कला में इतनी सरलता कि एक साधारण दर्शक भी उसका आनन्द ले सकता है पर वह कोई भोली-भाली कृति नहीं है. उनकी पूर्ण तकनीकी सैष्ठत है. उन्होंने अमूर्त चित्रण बहुत कम किया है उनके अनावृत्त चित्रों में माँसलता तो है पर शृंगारिता नहीं. आरा की कला में मातिस का प्रभाव स्पष्ट झलकता है, 'मराठा बैटिल' इनकी प्रसिद्ध कृति है. .




सैयद हैदर रजा

सैयद हैदर रजा का जन्म मध्य प्रदेश के ककैया नामक गाँव में 1922 में हुआ था. वह कई वर्षों से पेरिस में रह रहे हैं. उन्होंने स्थाई रूप से फ्रांस की नागरिकता ग्रहण कर ली है. रजा प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के जन्मदाताओं में से एक थे. प्रारम्भ में रजा की कला को देखकर उनके बाह्य अलंकरणों, उपादानों के प्रति मोह का पता चलता है, लेकिन जैसे-जैसे उनकी कला प्रौढ़ होती गई उनका यह मोह छूटता गया. रजा के रंगाकार न भारतीय हैं न ही फ्रांसीसी, वे ऐसे रंग जिनके पास परम्परा की पूरी अर्थमय की छटा देखने को मिलती है.


फ्रांसिस न्यूटन सूजा

आर्टिस्ट ग्रुप . . सूजा का जन्म 1924 में गोवा में हुआ था. प्रोग्रेसिव के जनक सूजा हुसैन, रजा व आरा के साथ भारतीय आधुनिक कला जगत् में चमके. इस ग्रुप में जोश व हिम्मत दोनों थी. सूजा ने अनगिनत चित्र बनाए. सूजा का दिमाग कम्प्यूटर की तरह चलता है. सूजा एक दिन में कई पेण्टिंग्स करते हैं. सूजा का अधिकांश कार्य एक्रेलिक रंगों के माध्यम में है. प्रभावशाली रेखांकनों में समूची दुनिया ही समायी है-मसीह, सलीब, औरत, देवी-देवता, चेहरे आदि सभी कुछ सूजा रेखांकित करते हैं


दोस्तों जल्द ही अन्य कलाकारों को भी इसमें जोड़ा जाएगा। 

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