प्राचीन भारत का इतिहास-हड़प्पा सभ्यता, सिंधुघाटी की सभ्यता-History of Ancient India-Harappan Civilization, Indus Valley Civilization in Hindi
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Sindhu Ghati Sabhyata | History of Indus valley civilization
भौगोलिक विस्तार एवं कालक्रम
प्राचीन सभ्यताओं में क्षेत्रफल की दृष्टि से कांस्ययुगीन, आद्य ऐतिहासिक कालीन सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार सबसे अधिक था। यह सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम नगरीय क्रान्ति की अवस्था को दर्शाती है। यह सभ्यता उत्तर में जम्मू के माण्डा से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने पर स्थित दैमाबाद तक और पश्चिम में बलुचिस्तान के मकरान तट पर स्थित सुत्कागेण्डोर से लेकर पूर्व में उत्तर प्रदेश के आलमगीरपुर तक फैली हुई थी।
समूचा क्षेत्र त्रिभुजाकार है, जिसका क्षेत्रफल लगभग, 12,99,600 वर्ग किमी है, जो प्राचीन मिस्र और मैसोपोटामिया की सभ्यता से बड़ा है। रेडियो कार्बन (C-14) पद्धति के आधार पर इसका काल 2350 ई. पू. से 1750 ई. पू. के बीच निर्धारित किया गया है।
सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने 1826 ई. में हड़प्पा सभ्यता की जानकारी दी। वर्ष 1921 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अध्यक्ष जॉन मार्शल के निर्देशन में इस स्थल का ज्ञान हुआ। सर्वप्रथम हड़प्पा की खोज के कारण इसका नाम हड़प्पा सभ्यता पड़ा। .
सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माताओं का निर्धारण करने का महत्त्वपूर्ण स्रोत कंकाल है। सर्वाधिक कंकाल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए है।
कंकालों के परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिन्धु सभ्यता में चार प्रजातियाँ निवास करती थीं-
- भूमध्यसागरीय
- ऑस्ट्रेलायड
- अल्पाइन
- मंगोलायड
सबसे ज्यादा भूमध्यसागरीय प्रजाति के लोग थे।
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नगर योजना
सिन्धु घाटी सभ्यता की सर्वप्रमुख विशेषता उसकी नगर योजना एवं जल निकास प्रणाली है। सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
प्रत्येक नगर दो भागों में विभक्त थे-पश्चिमी टीले और पूर्वी टीले। पश्चिमी टीले अपेक्षाकृत ऊँचे, किन्तु छोटे होते थे। इन टीलों पर किले अथवा दुर्ग स्थित थे। इसे नगर दुर्ग कहा जाता था।
पूर्वी टीले या निचले नगर पर नगर या आवास क्षेत्र के साक्ष्य मिले हैं, जो अपेक्षाकृत बड़े थे। इसमें सामान्य नागरिक, व्यापारी, शिल्पकार, कारीगर और श्रमिक रहते थे। दुर्ग के अन्दर मुख्यत: महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक और सार्वजनिक भवन तथा अन्नागार स्थित थे।
सामान्यत: पश्चिमी टीला एक रक्षा प्राचीर से घिरा होता था, जबकि पूर्वी टीला नहीं।
- कालीबंगा का नगर क्षेत्र (पूर्वी टीला) भी रक्षा प्राचीर से युक्त था।
- लोथल और सुरकोटडा में अलग-अलग दो टीले नहीं मिले हैं, बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे
- जबकि चान्हूदड़ो एकमात्र ऐसा नगर है, जो दुर्गीकृत नहीं था
- धौलावीरा का नगर तीन इकाइयों में बँटा था
धौलावीवा का साइनबोर्ड
धौलावीरा में एक बड़ा उत्कीर्ण लेख सम्भवत: गिरा हुआ साइनबोर्ड, मुख्य प्रवेश द्वार के पास मिला है, जो हड़प्पाई नगरों से प्राप्त अब तक लिखावट के सबसे बड़े नमूने हैं। यह लिखावट एक काठ की तख्ती पर खुदाई करके उसमें सफेद चूना (जिप्सम) भरकर तैयार की गई है, जिसमें दस संकेताक्षर हैं।
घरों के दरवाजे एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़क में न खुलकर गलियों में खुलते थे, परन्तु लोथल इसका अपवाद है, जहाँ के दरवाजे एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़कों की ओर खुलते थे।
कुछ भवनों की दीवारों पर प्लास्टर के भी साक्ष्य मिले हैं। यद्यपि मकान बनाने में कई प्रकार की ईंटों का उपयोग होता था, किन्तु सबसे प्रचलित आकार 4 : 2 : 1 का था।
- पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ी की एक विशाल साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानियाँ कहा है।
- हड़प्पा सभ्यता के लोग धरती की उर्वरता की देवी मानते थे।
- वर्तमान समय में भी भारतीय समाज में प्रचलित स्वास्तिक () का निशान हड़प्पा सभ्यता में भी प्रचलित था।
- सिन्धु सभ्यता के लोग नीले रंग से परिचित नहीं थे।
सड़कों के दोनों ओर नालियों के निर्माण के लिए पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था। घरो का पानी बहकर सड़कों तक आता था, जहाँ इनके नीचे मोरियाँ बनी हुई थी। ये मोरियाँ ईटों और पत्थर की सिल्लियों से ढंकी रहती थीं। इन मोरियों में नरमोखे (मेनहोल) भी बने थे। इस सभ्यता के लोग जुड़ाई के लिए मिट्टी के गारे तथा जिप्सम के मिश्रण का उपयोग करते थे।
सैन्धव सभ्यता में बड़े-बड़े भवन मिले हैं, जिनमें स्नानागार, अन्नागार, सभा भवन, पुरोहित आवास आदि प्रमुख हैं। मोहनजोदड़ो का सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है, जबकि अन्नागार सिन्धु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है। सिन्धु सभ्यता एक पूर्ण विकसित सभ्यता का प्रतिनिधित्व करती है, जिसकी प्रधान विशेषता नगरीकरण (Urbanisation) है।
राजनीतिक स्थिति
डॉ. रामशरण शर्मा के अनुसार, सिन्धु सभ्यता के लोगों ने सबसे अधिक ध्यान वाणिज्य और व्यापार की ओर दिया। अत: हड़प्पा का शासन सम्भवत: वणिक वर्गों के हाथों में था।
इतिहासकार हण्टर के अनुसार, यहाँ की शासन व्यवस्था जनतान्त्रिक पद्धति से चलती थी। मैके के अनुसार, हड़प्पा सभ्यता में जनप्रतिनिधि का शासन था। स्टुअर्ट पिग्गट ने इस सभ्यता की जुड़वाँ राजधानियाँ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के होने का " अनुमान लगाया है।
सामाजिक स्थिति
समाज की इकाई परम्परागत तौर पर परिवार थी। मातृदेवी की पूजा और मुहरों पर अंकित चित्र से यह परिलक्षित होता है कि सैन्धव समाज सम्भवत: मातृप्रधान या मातृसत्तात्मक था। सैन्धव समाज सम्भवत: अनेक वर्गों; जैसे—पुरोहित, व्यापारी, अधिकारी, शिल्पी, जुलाहे एवं श्रमिक में विभाजित थे। व्यापारी वर्ग सबसे प्रभावशाली था। योद्धा वर्ग के अस्तित्व का साक्ष्य नहीं मिला है, लेकिन सम्भवत: सभ्यता में दास-प्रथा का प्रचलन था।
इस सभ्यता के निवासी खाने-पीने, वस्त्र एवं आभूषण के शौकीन थे। सम्भवत: वे शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों थे। आभूषण सोने, चाँदी और माणिक्य के बनाए जाते थे। गरीब लोग सम्भवत: शंख, सीप और मिट्टी के बने हुए आभूषण पहनते थे। हाथी दाँत तथा शंख का उपयोग अलंकरण तथा चूड़ियाँ बनाने के लिए किया जाता था। आभूषणों का प्रयोग पुरुष और महिलाएँ दोनों करते थे।
तीन प्रकार के शवाधान—पूर्ण, आंशिक एवं दाह संस्कार का प्रमाण मिलता है। लोथल से तीन युगल शवाधान तथा कालीबंगा से एक युगल शवाधान मिलने से विद्वानों ने यहाँ सती प्रथा के प्रचलन का अनुमान लगाया है।
आर्थिक स्थिति
कृषि
सैन्धवकालीन अर्थव्यवस्था में समृद्ध कृषि आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार के सन्तुलन पर आधारित थी। दो फसलों की खेती, हल का प्रयोग, फसलों की विविधता सैन्धव कृषि अर्थव्यवस्था की देन है। इस सभ्यता के लोग नौ फसलें-गेहूँ, जौ, राई, मटर, तिल, सरसों, चावल, कपास, अनाज आदि पैदा करते थे।
कृषि कार्य हेतु प्रस्तर (पत्थर) एवं काँसे के औजारों का प्रयोग किया जाता था। इस सभ्यता से कोई फावड़ा या फाल नहीं मिला है। सम्भवतः ये लोग लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे।
- कालीबंगा से जुते हुए खेत एवं बनावली से मिट्टी का हल जैसा खिलौना प्राप्त हुआ है।
- मोहनजोदड़ो, हड़प्पा एवं लोथल से अन्नागार के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिन्धु सभ्यता के लोगों को दिया जाता है।
- ये लोग-तरबूज, खरबूजा, नारियल, अनार, नींबू, केला आदि फलों से परिचित थे।
पशुपालन
बैल, भैंस, गाय, भेड़, बकरी, कुत्ते, खच्चर आदि जानवर पाले जाते थे। लोथल एवं रंगपुर से घोड़े की मृणमूर्तियाँ तथा सुरकोटडा से घोड़े के अस्थिपंजर प्राप्त हुए हैं, परन्तु घोड़े पालने का स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिला है।
Points:-
- हाथी को पालतू बना लिया गया था।
- कूबड़ वाला साँड सबसे प्रिय पशु था।
- ऊँट की अस्थियाँ कालीबंगा से प्राप्त हुई हैं। .
- चावल की खेती का प्रमाण लीथल एवं रंगपुर से प्राप्त हुआ है।
- जल संग्रह के लिए बाँधों के निर्माण का साक्ष्य धौलावीरा से प्राप्त हुआ है।
- हड़प्पा एवं बनावली से जौ के साक्ष्य मिले हैं।
- लोथल से आटा पीसने वाली पत्थर की चक्की के दो पाट मिले हैं।
व्यापार एवं वाणिज्य
सिन्धु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार का सबसे बड़ा महत्त्व था। इसकी पुष्टि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तथा लोथल में अनाज के बड़े-बड़े कोठारों तथा ढेर सारी सीलों (मृण्मुद्राओं) के एक रूप लिपि और मानकीकृत माप-तौलों के अस्तित्व से होती है।
देशी एवं विदेशी दोनों प्रकार के व्यापार उन्नत अवस्था में थे। व्यापार विनिमय प्रणाली पर आधारित था।
देशी व्यापार के परिवहन के साधन बैलगाड़ी व पशु तथा विदेशी व्यापार मुख्यतः जल परिवहन द्वारा होता था। बन्दरगाह या व्यापार तन्त्र से जुड़े प्रमुख नगर थे-बालाकोट, डाबरकोट, सुत्कागेण्डोर, सोत्काकोह, मुण्डीगाक, मालवान, भगतराव तथा प्रभासपाटन।
मैसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलुहा (सिन्धु क्षेत्र) के साथ व्यापारिक सम्बन्ध की चर्चा है।
दिलमन सैन्धव एवं मैसोपोटामिया के बीच मध्यस्थ बन्दरगाह था। दिलमन की पहचान बहरीन द्वीप से तथा मनका की पहचान ओमान से की गई है।
उद्योग एवं शिल्प कला
हड़प्पा सभ्यता की विशाल इमारतों से राजगीरी का प्रमाण मिलता है। मोहनजोदड़ो से ईंटों के भट्टों के अवशेष मिले हैं। हड़प्पाई लोगों को लोहे का ज्ञान नहीं था, वे ताँबा में टिन मिलाकर काँसा बनाना जानते थे।
हड़प्पा में नाव बनाने के साक्ष्य मिले हैं। धातुओं से लघु मूर्तियाँ बनाने के लिए मोम-साँचा विधि प्रचलित थी। लोथल से मिट्टी निर्मित नाव के पाँच नमूने मिले हैं।
हड़प्पा में सभ्यता का प्रमुख उद्योग सूती-वस्त्र निर्माण था। मुद्रा निर्माण, मूर्ति निर्माण, आभूषण एवं मनके बनाने के साक्ष्य भी मिलते हैं। बर्तन निर्माण भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यवसाय था।
भारत में चाँदी सर्वप्रथम सिन्धु सभ्यता में पाई गई है। सैन्धव सभ्यता के अन्तर्गत कांस्य कला, मृण्मूर्तियाँ, मनका-निर्माण तथा मुहर निर्माण की कला प्रचलित थी।
सैन्धव सभ्यता के लोग कलाकृतियों के निर्माण के लिए धातु एवं पत्थर का उपयोग कम करते थे। सबसे प्रसिद्ध कलाकृति है-मोहनजोदड़ो से प्राप्त नृत्य की मुद्रा में नग्न स्त्री की काँस्य प्रतिमा। अन्य प्रसिद्ध कलाकृतियाँ हैं-हड़प्पा एवं चान्हूदड़ो से प्राप्त काँसे की गाड़ियाँ, मोहनजोदड़ो से प्राप्त दाढ़ी वाले सिर की पत्थर की मूर्ति (सम्भवत: पुजारी), स्वास्तिक चिह्न, मोहनजोदड़ो से प्राप्त हाथी दाँत पर मानव चित्र।
मिट्टी के बर्तन में एकरूपता है। ये बर्तन सादे हैं और उन पर लाल पट्टी के साथ-साथ काले रंग की चित्रकारी मिलती है। बर्तनों पर मुद्रा के निशान भी हैं, जिससे ज्ञात होता है कि उन बर्तनों का व्यापार भी होता था। हड़प्पा सभ्यता से पक्की मिट्टी की मृणमूर्तियाँ मिली हैं। बर्तनों पर वनस्पति का चित्रांकन पशुओं की अपेक्षा ज्यादा है। •
माप-तौल
तौल की इकाई 16 के आवर्तकों में होती थी; जैसे-16, 64, 160, 320, 640 आदि। सोलह के अनुपात की यह परम्परा आधुनिक काल तक चलती रही है। बाट घनाकार, वर्तुलाकार, बेलनाकार, शंक्वाकार एवं ढोलाकार थे।
सैन्धव लोग मापना भी जानते थे। ऐसे डण्डे पाए गए हैं, जिन पर माप के निशान लगे हुए हैं। इनमें एक काँसे का भी है। मोहनजोदड़ो से सीप का तथा लोथल से हाथी दाँत से निर्मित पैमाना मिला है। .
मुहर
मुहरें हड़प्पा सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ हैं। अब तक लगभग 2000 मुहरें प्राप्त हुई हैं। इनमें से अधिकांश मुहरें (लगभग 500) मोहनजोदड़ो से मिली हैं। आमतौर पर मुहरें चौकोर होती थीं। चौकोर मुहरों पर लेख व पशुआकृति दोनों होती थीं, जबकि बेलनाकार मोहरों पर ज्यादातर लेख होते थे।
बेलनाकार, र, वृत्ताकार, आयताकार मुहरें भी मिली हैं। अधिकांश मुहरें सेलखड़ी की बनी होती थीं, परन्तु कुछ गोमेद, मिट्टी एवं चर्ट की बनी थीं। मुहरों पर सर्वाधिक चित्र एक सींग वाले साँड (वृषभ) का है। .
लिपि
सिन्धु लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न एवं 250 से 400 तक अक्षर हैं। इस लिपि का सबसे पुराना नमूना 1833 ई. में मिला था और वर्ष 1923 तक पूरी लिपि प्रकाश में आ गई, किन्तु यह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
लिपि भाव चित्रात्मक है तथा प्रत्येक अक्षर किसी ध्वनिभाव या वस्तु का सूचक है। यह क्रमश: दाईं ओर से बाईं ओर तथा बाईं ओर से दाईं ओर लिखी जाती है। इस पद्धति को बोस्ट्रोफेदोन कहा गया है। लिपि पर सबसे ज्यादा चिह्न U आकार का तथा सबसे ज्यादा प्रचलित चिह्न मछली का है।
धार्मिक स्थिति
सिन्धु सभ्यता के लोग मानव, पशु तथा वृक्ष तीनों रूपों में ईश्वर की उपासना करते थे। इनके धार्मिक दृष्टिकोण का आधार इहलौकिक तथा व्यावहारिक अधिक था। इस सभ्यता के लोग भूत-प्रेत, तन्त्र-मन्त्र आदि में विश्वास करते थे। बड़ी संख्या में ताबीजों की प्राप्ति से उनके अन्ध विश्वासों का पता चलता है।
भक्ति एवं परलोक जैसी अवधारणा इस सभ्यता के धार्मिक जीवन के अंग थे। वे यज्ञ से परिचित थे तथा पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। कालीबंगा से अग्निवेदिका का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। इस सभ्यता में कहीं से किसी मन्दिर का अवशेष नहीं मिला है।
मातृदेवी की उपासना, पशुपति शिव की उपासना, लिंग एवं योनि पूजा, नाग पूजा, वृक्ष पूजा, पशु पूजा, अग्नि पूजा, जल पूजा आदि का प्रचलन था। स्वास्तिक एवं चक्र के साक्ष्य सूर्य पूजा के प्रतीक हैं। हड़प्पा से प्राप्त एक मूर्तिका में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर पद्मासन मुद्रा में एक तीन मुख वाला पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है, जिसके सिर पर तीन सींग हैं। इसके बाईं ओर गैण्डा एवं भैंसा तथा दाईं ओर हाथी एवं बाघ हैं। आसन के नीचे दो हिरण बैठ हुए हैं। इसे पशुपति शिव का रूप माना गया है।
सिन्धु सभ्यता का पतन
सिन्धु सभ्यता के पतन के लिए कोई एक कारक उत्तरदायी नहीं था, बल्कि अलग-अलग स्थलों के लिए अलग-अलग कारक उत्तरदायी थे।
पतन के सन्दर्भ में विद्वानों के मत
विद्वान् मत गार्डन चाइल्ड एवं ह्वीलर बाह्य एवं आर्यों के आक्रमण जॉन मार्शल, मैके एवं एस आर राव ओरल स्टाइन, ए एन घोष एम आर साहनी भूगर्भिक परिवर्तन जॉन मार्शल प्रशासनिक शिथिलता के यू आर कनेडी प्राकृतिक आपदा बाढ़ जलवायु परिवर्तन
सिन्धु सभ्यता की देन
सिन्धु सभ्यता में प्रचलित अनेक चीजें ऐतिहासिक काल में भी निरन्तर रहीं। इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं-दशमलव पद्धति पर आधारित मापतौल प्रणाली; नगर नियोजन तथा नालियों की व्यवस्था, बहुदेववाद का प्रचलन, मातृदेवी की पूजा, शिव पूजा, वृक्ष पूजा, पशु पूजा, लिंग एवं योनि पूजा, योग का प्रचलन, जल का धार्मिक महत्त्व, स्वास्तिक, चक्र आदि प्रतीक, ताबीज, तन्त्र-मन्त्र का प्रयोग, आभूषणों का प्रयोग, बहुफसली कृषि व्यवस्था, अग्निपूजा या यज्ञ, मुहरों का उपयोग, इक्कागाड़ी एवं बैलगाड़ी, आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार आदि।
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