पंचायतीराज व्यवस्था for VPO Exam 2023-Upsssc VPO Exam Panchayati Raj System

पंचायतीराज व्यवस्था for VPO Exam 2023-Upsssc VPO Exam Panchayati Raj System

Upsssc VPO Exam Panchayati Raj System in Hindi 2023
Upsssc VPO Exam Panchayati Raj System in Hindi 2023

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Panchayati Raj System in Hindi for VPO Exam 2023

Chapter-01-पंचायतीराज व्यवस्था
65 Marks Approx- थोड़ा पढ़िए सॉलिड पढ़िए
इस चैप्टर में क्या पढ़ना है
पंचायतीराज व्यवस्था क्या है
भारतीय सविंधान में पंचायतीराज
ब्रिटिश काल में पंचायतीराज व्यवस्था
पंचायतीराज व्यवस्था हेतु गठित समितियाँ
वर्तमान में पंचायतीराज व्यवस्था का स्तर
पंचायतीराज के कार्य
पंचायतीराज का महत्व

Next-Chapter-02-पंचायतीराज से सम्बंधित अन्य टॉपिक्स

पंचायतीराज व्यवस्था क्या है
पंचायती राज व्यवस्था देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाली शासन प्रणाली है। भारत एक कृषि प्रधान देश है और देश की 80 से 90 प्रतिशत जनसंख्या हमारे ग्रामीण इलाकों में निवास करती है। जब भी हम ग्रामीण क्षेत्र की बात करते हैं तो ग्राम पंचायत या पंचायत समिति का जिक्र जरूर होता है।

यह एक शासन प्रणाली है जो भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में लागू होती है। इस प्रणाली के अंतर्गत, एक पंचायत (ग्राम पंचायत, तालुका पंचायत या जिला पंचायत) के निर्वाहन, प्रशासन और विकास से संबंधित कार्यों का ध्यान रखा जाता है। पंचायती राज के कार्यों का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास को सुनिश्चित करना है।

एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत शक्ति का विकेन्द्रीकरण किया जाता है तथा सत्ता तथा प्रशासनिक शक्तियों को विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। शक्ति का विकेन्द्रीकरण किया जाता है ताकि विकास योजनाओं को राष्ट्र के प्रत्येक क्षेत्र में क्रियान्वित किया जा सके।
पंचायती राज मंत्रालय द्वारा हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन 73वें संविधान संशोधन विधेयक राष्ट्रपति द्वारा स्वकृत किया गया।

भारतीय सविंधान में पंचायतीराज
स्थानीय स्वशासन शासन की वह व्यवस्था है जिसमें निचले स्तर पर प्रशासन में लोगों की भागेदारी सुनिश्चित कर उनकी समस्याओं को समझने तथा उनका हल करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार, स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था एक ओर तो लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण सुनिश्चित करती है तो दूसरी ओर आम जनता को स्वयं अपनी समस्याओं के हल का मार्ग प्रशस्त करती है।

महात्मा गांधी ग्राम स्वराज के पक्षधर थे। भारत गांवों का देश अतः गांवों के विकास के बिना भारत की प्रगति संभव नहीं। गांधी जी गांवों को राजनीतिक व्यवस्था का केंद्र बनाना चाहते थे ताकि निचले स्तर पर लोगों को राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में शामिल किया जा सके। इसी कारण उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था को प्रभावी व पंचायती का आर्थिक

मजबूत बनाने की वकालत की थी। परंतु डॉ. अम्बेडकर व्यवस्था के विरोधी थे। वे पंचायतों को संकीर्णता और पिछड़ेपन प्रतीक मानते थे। उनके अनुसार, पंचायतें सामाजिक व समानता की राह में बाधक बन सकती थी। शायद यही कारण है कि संविधान निर्माण के समय पंचायती राज व्यवस्था को टाल दिया गया। परंतु गांधीजी की भावनाओं के प्रति आदर दिखाते हुए इसे अनुच्छेद 40 के अंतर्गत राज्य के नीति निदेशक तत्वों में स्थान दिया गया। अनुच्छेद 40 के अनुसार, राज्य ग्राम पंचायतों के गठन करने के लिए कदम उठाएगा और उन्हें स्वायत्त शासन की इकाई के रूप में कार्य करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा। साथ ही, स्थानीय स्वशासन को संविधान की 7वीं अनुसूची के सूची-2 (राज्य सूची) में स्थान देकर इस संबंध में विधि बनाने की शक्ति राज्य विधानमंडल को प्रदान की गई। 

73 वां और 74वां संविधान संशोधन
प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल 1992 में पारित 73वें और 74वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया तथा स्थानीय स्वशासन के ढांचे में मूलभूत परिवर्तन किया गया। संविधान में भाग 9 (अनुच्छेद 243 तथा 243क से 243ण) तथा भाग 9क (अनुच्छेद 243-तु से 243- य तथा अनुच्छेद 243-य-क से 243-य-छ) तथा 11वीं और 12वीं अनुसूचियाँ जोड़ी गईं। भाग 9 जहां पंचायतों के बारे में व्यवस्था देता है वहीं भाग 9क नगरपालिकाओं की व्यवस्था का उपबंध करता है। 11वीं अनुसूची में पंचायतों जबकि 12वीं अनुसूची में नगरपालिकाओं के कार्यक्षेत्र का उल्लेख किया गया है।

संविधान में स्थानीय स्वशासन
पंचायत-भाग 9 अनुच्छेद 243, 243-क से 243 ण (73वां संविधान संशोधन) 
नगर पालिकाएं-भाग 9क-अनुच्छेद 243त से 243 य अनुच्छेद 243-य-क से 243-य-छ
11वीं अनुसूची-पंचायतों के कार्यक्षेत्र (29 विषय)
12वीं अनुसूची-नगरपालिकाओं के कार्यक्षेत्र (18 विषय)

पंचायती राज प्रणाली (The Panchayats)
73वें और 74वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों और नगरपालिकाओं के गठन की नई प्रणाली का संविधान में किया गया है। अनु. 243- क के अनुसार, राज्य विधानमंडल को ग्राम पंचायतों के गठन और उनकी शक्तियों और कृत्यों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 243-छ के अनुसार, राज्य विधानमंडल पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा जो उन्हें स्वायत्तशासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने के लिए समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हो। 
अनुच्छेद 243-ज-राज्य विधान मंडल पंचायतों को कर अधिरोपित करने की शक्ति प्रदान करने और राज्य निधि से सहायता अनुदान के लिए भी विधि बनाएगा
अन्य अनुच्छेदों के बारें में-Complete Course में उपलब्ध



ब्रिटिश काल में पंचायतीराज व्यवस्था
  • ब्रिटिशकाल में 1880 से 1884 के मध्य लार्ड रिपन का कार्यकाल पंचायती राज का स्वर्णकाल माना जाता है। वर्ष 1882 में उन्होंने स्थानीय स्वशासन सम्बंधी प्रस्ताव देकर स्थानीय निकायों को बढ़ावा देने का कार्य किया। इसीलिए लॉर्ड रिपन को भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक माना जाता है।
  • वर्ष 1919 में भारत शासन अधिनियम के तहत देश के सभी प्रांतों में दोहरे शासन व्यवस्था को लागू किया गया।
  • इसके बाद जब हमारा देश आज़ाद हुआ तो वर्ष 1957 में योजना आयोग के गठन के साथ ही विभिन्न समितियों के सुझावों के तहत सामुदायिक विकास और राष्ट्रीय सेवा विस्तार कार्यक्रमों की शुरुआत हुई।
  • पंचायतीराज व्यवस्था  की शुरूआत देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान राज्य के नागौर जिले से की थी। परन्तु आधिकारिक रूप से पंचायती राज की शुरुआत 11 अक्टूबर 1959 को आंध्र प्रदेश राज्य से हुई थी।



पंचायतीराज व्यवस्था हेतु गठित समितियाँ
1920 में ब्रिटिश प्रांतों में पंचायती राज की स्थापना के लिए कानून बनाये गये । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संघीय सरकार ने पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की। 2 अक्टूबर, 1952 को गांवों के आर्थिक विकास व सामाजिक सुधार के लिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programme) का प्रारंभ किया गया। हालांकि यह अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जन साधारण को विकास की प्रणाली से जोड़ना था। परन्तु इससे जनसाधारण को पर्याप्त लाभ न हुआ तथा इसने प्रशासनिक तंत्र को ही अधिक शक्तिशाली बनाया।

पंचायती राज से सम्बंधित महत्वपूर्ण समितियाँ-
1-बलवंत राय मेहता समिति-सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता के कारणों की समीक्षा के लिए 1956 में बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया। इस समिति ने 1957 में येतात अपनी रिपोर्ट में सामुदायिक विकास कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए पंचायती राज्य व्यवस्था को लागू करने पर बल दिया, जिसे लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का नाम दिया गया। समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को त्रिस्तरीय बनाने का सुझाव दिया- ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद-
ग्राम- ग्राम पंचायत
खंड- पंचायत समिति
ज़िला- ज़िला परिषद

राष्ट्रीय विकास परिषद ने 1958 में बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों को अपनी स्वीकृति प्रदान की। राजस्थान देश का पहला राज्य था जिसने पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की। 2 अक्टूबर 1959 को प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले में इसका उद्घाटन किया। उसी वर्ष यह व्यवस्था आंध्र प्रदेश में भी लागू कर दी गई। परंतु इस प्रयास को भी आशातीत सफलता नहीं मिली। पंचायती राज संस्थाओं में धन की कमी, राज्य सरकारों पर निर्भरता, राजनीतिक चेतना के अभाव तथा आंतरिक मतभेदों ने इस कार्यक्रम की असफलता को सुनिश्चित किया।
पंचायती राज से संबंधित अन्य समितियां-Complete Course में उपलब्ध
  • बलवंत राय मेहता समिति (1956-57)
  • अशोक मेहता समिति (1977-78)
  • जी. वी. के. राव समिति (1985)
  • डॉ. एल एम सिन्धवी समिति (1986)
  • पी के थुगन समिति (1988)
  • गाडगिल समिति


पंचायतीराज व्यवस्था का स्तर
ग्राम पंचायत-पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम पंचायत सबसे निम्न स्तर पर काम करने वाली संस्था होती है। ग्राम पंचायत का कार्य होता है ग्राम सभा के सभी तरह के चुनावों को निष्पक्ष तरीके से पूर्ण करवाना। ग्राम पंचायत के चुनावों में लोगों के द्वारा एक सरपंच को चुना जाता है। जो की गाँव में होने वाले विकास कार्यों का निरीक्षण और देख रेख करता है। आपको बता दें की सरपंच को कहीं-कहीं मुखिया कहकर भी सम्बोधित किया जाता है।

पंचायत समिति-ग्राम पंचायत के ऊपर काम करने वाली संस्था को पंचायत समिति कहा जाता है। पंचायत समिति का कार्य होता है तहसील, ब्लॉक, आदि में रिक्त संवैधानिक पदों पर योग्य उम्मींदवार की नियुक्ति करना। पंचायत समिति के द्वारा हर पांच साल में निश्चित समय पर चुनाव आयोजित किये जाते हैं। आपको बता दें की पंचायत समिति का सचिव समिति विकास अधिकारी होता है। पंचायत समिति में विधानसभा, लोकसभा, नगरपालिका, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, प्रधान आदि के सदस्य के रूप में अपना कार्य करते हैं।

जिला परिषद्-पंचायती राज व्यवस्था में जिला परिषद् एक उच्चस्तरीय संस्था है जिसका कार्य आवश्यकता पड़ने पर ग्राम पंचायत और पंचायत समिति का मार्गदर्शन करना है। जिला परिषद का कार्य जिले में आने वाले सभी गांवों और पंचायतों का अध्ययन करके रिपोर्ट तैयार कर राज्य सरकार और केंद्र सरकार को देना है। जिला परिषद् आवश्यकता पड़ने पर अनुदान के द्वारा ग्राम पंचायतों की मदद करती है। जिला परिषद के सम्पूर्ण कार्यान्वयन की देख रेख एक जिम्मा DM जिलाधिकारी का होता है।


पंचायती राज के कार्य
ग्रामीण क्षेत्र में कानूनी शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए पंचायती राज व्यवस्था के कार्यों को सरकार के द्वारा निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार से हैं –
  • पंचायती राज व्यवस्था के तहत भारत के ग्रामीण क्षेत्रों का आर्थिक रूप में विकास करना।
  • केंद्र एवं राज्य सरकार के द्वारा लोगों के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं को लाभ पहुंचाना।
  • न्याय पंचायत के तहत ग्रामीण इलाकों में सामाजिक न्याय प्रणाली को मजबूत करना।
  • ग्रामीण स्तर पर नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित एवं संरक्षित करना।
  • पंचायती राज व्यवस्था के त्रि-स्तरीय संगठीय ढांचे के तहत नयी ग्रामीण सभाओं की स्थापना करना।
  • पंचायती स्तर पर होने वाले चुनावों को निष्पक्ष और समय से पूर्ण करवाना।

प्रशासनिक कार्य: पंचायत के निर्वाहन के लिए कार्यकारी और कार्यपालिका समिति की स्थापना करना। इसमें पंचायती राज अधिनियम और स्थानीय स्तर पर बनाए गए नियमों के अनुसार समाचार-पत्रिका और रिकार्ड रखना शामिल होता है।
ग्रामीण विकास कार्य: ग्राम स्तर पर विकास कार्यों की योजनाओं का निर्माण, क्रियान्वयन और मॉनिटरिंग करना। इसमें सड़क, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक कल्याण, कृषि, ग्रामीण रोजगार आदि क्षेत्रों में विकास कार्य शामिल होते हैं।
न्यायपालिका कार्य: ग्रामीण क्षेत्रों में न्यायपालिका के कार्यों का निर्वाहन करना, जैसे कि छोटे मामलों में न्यायिक निर्णय देना, संघर्ष विवादों का समाधान करना आदि।
आर्थिक प्रबंधन कार्य: पंचायत के आर्थिक प्रबंधन का ध्यान रखना, जिसमें अधिनियम द्वारा प्रावधानित ग्राम स्तरीय आय और खर्च की प्रबंधन शामिल होती है।
सामुदायिक संगठन और प्रशासनिक सहयोग: ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक संगठनों का निर्माण, प्रशासनिक सहयोग और उनके साथ सहयोगपूर्ण सम्बन्ध बनाना।
स्थानीय स्वशासन प्रशासन: स्थानीय स्वशासन प्रशासन के लिए निर्वाहक भूमिका निभाना, निर्वाहक अधिकारी के चुनाव का आयोजन करना और निर्वाहक अधिकारी का समर्थन करना।


पंचायतों का गठन और संरचना
अनुच्छेद 243-ख के द्वारा राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर (ग्राम पंचायत), मध्यवर्ती स्तर (मंडोल / पंचायत) तथा जिला स्तर (जिला पंचायत) पर पंचायतों का गठन किया जाएगा । परंतु बीस लाख से कम जनसंख्या वाले राज्यों में मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन नहीं किया जाएगा। प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक ग्राम सभा होगी जिसके सदस्य पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज सभी व्यक्ति होंगे।

अनुच्छेद 243-ग में पंचायतों की संरचना का उपबंध है। राज्य विधानमंडल पंचायतों की संरचना से संबंधित कानून बना सकेगा, परंतु पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या और पंचायत में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या के बीच का अनुपात सभी राज्यों में यथा संभव एक ही होना चाहिए।

पंचायतों के सभी स्थान प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाएंगे। ग्राम पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन राज्य द्वारा बनाई गई विधि के अनुसार होगा जबकि मध्यवर्ती व जिला पंचायतों के अध्यक्ष का निर्वाचन उसके निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से किया जाएगा। लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधान सभा तथा विधान परिषद के सदस्यों का मध्यवर्ती व जिला पंचायतों में प्रतिनिधित्व राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि के अनुसार निर्धारित किया जाएगा।

पंचायतों में स्थानों का आरक्षण (अनुच्छेद 243 घ)
प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए स्थानों का आरक्षण उनकी आबादी के अनुपात में होगा। भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में स्थानों का आवंटन बारी-बारी से किया जा सकता है।
प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले कुल स्थानों का एक-तिहाई भाग महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगा। आरक्षित स्थानों का एक-तिहाई भाग उसी समुदाय के महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगा।
पंचायतों में अध्यक्ष के पद का आरक्षण भी इसी प्रकार किया जाएगा।
राज्य विधानमंडल पिछड़े वर्गों के लिए पंचायतों व अध्यक्ष पदों के आरक्षण के लिए नियम बना सकती है।

Main Focus on Next Chapters
पंचायतों की अवधि
पंचायतों में स्थानों का आरक्षण 
पंचायत सदस्य की योग्यताएं
पंचायतों के लिए वित्त आयोग
उत्तर प्रदेश में पंचायती राज
पंचायतीराज व्यवस्था की चुनौतियाँ एवं समाधान
ग्राम पंचायतों के अधिकार
राज्य निर्वाचन आयोग


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