मूल अधिकारों का वर्गीकरण-समता एवं स्वतंत्रता का अधिकार-Classification of Fundamental Rights-Right to Equality and Freedom 14 to 22

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इसमें हम पढ़ेंगे हमारे कुछ मौलिक अधिकार तथा उनका वर्गीकरण

प्रिय छात्रों इसमें हम केवल समता एवं स्वतंत्रता का अधिकार अनु-14 से 22 तक ही पढ़ेंगे बाकी अनुच्छेद अगले अध्याय में पढ़ेंगे

मूल अधिकारों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है-

मूल अधिकारों का वर्गीकरण-Classification of Fundamental Rights 

प्रारंभ में भारतीय संविधान में सात प्रकार के मूल अधिकार प्रदान थे। 
44 से संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा संपत्ति के अधिकार को अनुच्छेद 31 से हटा दिया गया। 
वर्तमान में भाग 3 के अंतर्गत 6 प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन है।
  1. समता का अधिकार- अनुच्छेद- 14 से 18
  2. स्वतंत्रता का अधिकार- अनुच्छेद- 19 से 22
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार- अनुच्छेद- 23 से 24
  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार- अनुच्छेद- 25 से 28
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार- अनुच्छेद- 29 से 30
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार- अनुच्छेद- 32


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समता का अधिकार अनुच्छेद-14 से 18 

मूल अधिकारों की में समता का अधिकार सबसे पहले रखा गया है। संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14 से 18 में प्रत्येक व्यक्ति को समता का अधिकार प्रदान किया गया है। इसमें नैसर्गिंग न्याय का सिद्धांत अन्तर्निहित है। अनुच्छेद-14 समता का अधिकार के मूल सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं जबकि अनुच्छेद-15, 16, 17 18 समता के अधिकार के नियम के उदाहरण है। 


विधि के समक्ष समता 
इसका अर्थ है कि विधि के अधीन कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं होगा। किसी भी व्यक्ति को कानून के उल्लंघन के सिवाय दंडित नहीं किया जाएगा। अतः सभी को समान कानून संरक्षण प्राप्त है।इसकी अवधारणा ब्रिटेन के संविधान से ली गई है।



विधियों का समान संरक्षण 
विधियों के समान संरक्षण की अवधारणा अमेरिका के संविधान से ली गई है। इसमें समानता औरनैसर्गिंग न्याय की अवधारणा विद्यमान है। यहां यह समझ लेना आवश्यक है कि विधियों के समान संरक्षण का तात्पर्य समान परिस्थितियों वाले व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना है, आसमान परिस्थिति वाले व्यक्तियों के साथ समानता का व्यवहार का कोई अर्थ नहीं है।


अनुच्छेद-14 व्यक्तियों के बीच विभेद का प्रतिषेध करता है परंतु वर्गीकरण का नहीं अतः व्यक्तियों के बीच उनकी प्रकृति, योग्यता, परिस्थिति, भगौलिक स्थिति, शिक्षा आयु, संपत्ति आदि के आधार पर भेद किया जा सकता है। तथा उनके लिए अलग-अलग विधियां लागू की जा सकती है।


समानता के अधिकार के अपवाद

मूल अधिकारों के भाग में समानता के नियम के कुछ अपवाद भी विद्यमान है। जैसे-
  • अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार राज्य स्त्रियों और बालकों के कल्याण के लिए विशेष उपबंध कर सकता है। 
  • अनुच्छेद 15 (4) के अनुसार राज्य सामाजिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के वर्गों या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष उपबंध कर सकता है। 
  • अनुच्छेद 15 (5) के अनुसार राज्य सामाजिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के लिए तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश के लिए विशेष उपबंध कर सकता है। 
  • अनुच्छेद 16(4) के अनुसार राज्य पिछड़े नागरिकों के किसी वर्ग या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जातियों के लिए लोक नियोजन का प्रावधान कर सकता है।

समता के अधिकार के कुछ अपवाद विशेषाधिकार के रूप में भी हैं -जैसे

अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल के पद पर रहने पर न्यायालय में कोई कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है न ही इन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।
अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति व राज्यपाल अपनी शक्ति के  प्रयोग और कर्तव्य हेतु किस न्यायालय के प्रति उत्तरदाई नहीं होंगे। 
अनुच्छेद 361 इनके विरुद्ध सिविल कार्यवाही 2 माह की सूचना के बाद ही आरंभ होगी। 
संसद तथा विधान मंडल के सदस्यों को संविधान में कुछ विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं- सदन के किसी सदस्य को सत्र के 40 दिन पूर्व सत्र के दौरान तथा सत्र के स्थगित होने के 40 दिन बाद दीवानी मामलों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।



धर्म मूल वंश जाति लिंग या जन्म के स्थान पर विभेद  का प्रतिषेध (अनुच्छेद-15)

अनुच्छेद-15 समता  के अधिकार का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। अनुच्छेद 15(1)  राज्य को आदेश दिया गया है कि वह किसी नागरिक के साथ केवल धर्म जाति मूल मंत्र जन्म स्थान में किसी आधार पर कोई विभेद नहीं किया जाएगा। यह अधिकार केवल नागरिकों को प्राप्त विदेशियों को नहीं।

अनुच्छेद अनुच्छेद 15(1) तथा अनुच्छेद 15(2) समानता के अधिकार के उदाहरण है जबकि अनुच्छेद 15 (3) अनुच्छेद 15 (4) और अनुच्छेद 15 (5) इसके अपवाद है।


स्त्रियों और बालकों के लिए विशेष उपबंध-अनुच्छेद-15(3)

इसमें स्त्रियों और बालकों के लिए विशेष उपबंध किया गया है। 

पिछड़े वर्गों अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष उपबंध-अनुच्छेद-15(4) 

अनुच्छेद 15 (4) राज्य को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष उपबंध कर सकता है। 

अनुच्छेद 29(2) की कोई बात इन उपबंधों पर लागू नहीं होगी। आपको बता दें कि अनुच्छेद 29(2)  के अनुसार किसी राज्य द्वारा सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश के लिए धर्म मूल वंश जाति भाषाई आधार परविभेद नहीं किया जा सकता है। जबकि अनुच्छेद-15(4) यही रुल अपना रहा है।



निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रबंध-अनुच्छेद-15(5)

अनुच्छेद 15 (5) 93वें  संविधान संशोधन अधिनियम 2005 द्वारा जोड़ा गया। यह सामाजिक दृष्टि से पिछड़े नागरिक और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के छात्रों को शिक्षण संस्थानों में आरक्षण काउपबंध करता है, परंतु धर्म या भाषा पर आधारित अल्पसंख्यक वर्गों द्वारा स्थापित शिक्षा संस्थानों पर यह इनका नियम लागू नहीं होगा।

इस प्रकार अनुच्छेद- 15(5) निजी और उच्च शिक्षा शिक्षण संस्थान वाले संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण का उपबंध करता है।


लोक नियोजन में अवसर की समता-अनुच्छेद-16

अनुच्छेद 16 (1) और अनुच्छेद 16(2) में अवसर की समता का उल्लेख किया गया है जबकि अनुच्छेद 16(3), 16 (4) और 16(5) इसके अपवाद है। 

अनुच्छेद-16 में भारत के सभी नागरिकों को लोक नियोजन में अवसर की समानता की गारंटी दी गई है, यह समानता राज्य सरकार के अधीन नौकरियों में होगी गैर सरकारी नौकरियों में नहीं होंगी। 



लोक नियोजन में आरक्षण 

अनुच्छेद 16 (4) समता के नियम का महत्वपूर्ण अपवाद है। यह पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान करता है। अनुच्छेद 16 (4) में राज्य पिछड़े नागरिकों के लिए पदों का उपबंध करता है ,यदि उसका प्रतिनिधित्व नहीं है।

82 वां संविधान संशोधन 2000 द्वारा अनुच्छेद 335 नया जोड़ा गया कि राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जातियों के लिए नियुक्ति और पदोन्नति परीक्षा में आवश्यक न्यूनतम अंको को कम कर सकता है।



पिछड़ा वर्ग-Backward Class

भारतीय संविधान में पिछड़े नागरिकों के वर्ग को परिभाषित नहीं किया गया है। अनुच्छेद-340 के अधीन राष्ट्रपति सामाजिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं  की जांच करने और उनकी स्थिति में सुधार के उपाय जानने के लिए एक आयोग की नियुक्ति कर सकता है। 

अनुच्छेद 15(4) भी राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के लिए विशेष उपबंध का करने की छूट देता है। 


  • संविधान में आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष उपबंध का कोई प्रावधान नहीं है।अनुच्छेद 16 (4) सामाजिक पिछड़ेपन पर बल देता है ना कि आर्थिक पिछड़ेपन पर। केवल आर्थिक आधार पर पिछड़े वर्ग की पहचान नहीं की जा सकती और आर्थिक आधार पर आरक्षण अवैध है। 
  • आरक्षण अनुचित नहीं होना चाहिए तथा आरक्षण की सीमा ऐसी होनी चाहिए जो अनुच्छेद-16 (1) में वर्णित अवसर की समानता को प्रभावहीन ना करें। इसी आधार पर न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित की। इससे अधिक आरक्षण नहीं हो सकता।
  • आरक्षण का लाभ पिछड़े  सामाजिक तथा आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग को नहीं मिलना चाहिए। इसी आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग में क्रीमी लेयर की अवधारणा प्रस्तुत की गई।
  • आरक्षण का लाभ सीधी भर्ती तथा प्रारंभिक नियुक्तियों में होना चाहिए प्रोन्नति के मामले में नहीं। प्रोन्नति में आरक्षण अवसर की समता का उल्लंघन है। तथा प्रशासन की कुशलता के हित में नहीं है। अतः प्रोन्नति में आरक्षण अवैध है। इस हिसाब से पहले से ही जारी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण के मामले में समस्या उत्पन्न हो गई। इस स्थिति से निपटने के लिए 77वां संविधान संशोधन 1995 द्वारा एक अनुच्छेद 16 (4) (क) जोड़ा गया जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए प्रोन्नति में आरक्षण को संवैधानिक मान्यता प्रदान करता है।


अस्पृश्यता का अंत-अनुच्छेद-17
अनुच्छेद-17 समता के अधिकार का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इसके द्वारा अस्पृश्यता का अंत किया गया। तथा किसी रूप में इसका आचरण निषिद्ध किया गया। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी निर्योग्यता को लागू करना विधि के अनुसार दंडनीय अपराध माना जाएगा।
इसकी पूर्ति के लिए सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 बनाया गया जिसमें अस्पृश्यता का व्यवहार करने वालों के लिए दंड है।



उपाधियों का अंत-अनुच्छेद-18 
अनुच्छेद-18 में वर्णित उपाधियों का अंत भी समानता के अधिकार का एक उदाहरण है। इसके द्वारा सेना और विधा संबंधित सम्मान के सिवाय अन्य उपाधियों का अंत किया गया है। 

अनुच्छेद 18(1) यह उपबंध करता है कि राज्य किसी व्यक्ति को सेना या विधा सम्बन्धी सम्मान के सिवाय कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।

अनुच्छेद 18(2) भारत के किसी नागरिक को किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार करने का प्रतिषेध करता है। 

अनुच्छेद 18 (3) के अनुसार कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है परंतु भारत सरकार के विश्वास के पद धारण करता है तो वह कोई विदेशी राज्य की उपाधि राष्ट्रपति की अनुमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

अनुच्छेद 18 (4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के पद पर धारण कोई व्यक्ति चाहे वह नागरिक हो या विदेशी किसी को भी विदेशी राज्य से कोई भेंट या उपलब्धि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

उत्तम न्यायालय ने एक निर्णय में या कहा कि भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्म विभूषण और पद्म श्री जैसे सम्मान अनुच्छेद 18 के अधीन उल्लेखित उपाधि में शामिल नहीं है तथा यह संवैधानिक है।


स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद-19 से 22

अनुच्छेद 19 लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का होना आवश्यक है। स्वतंत्रता का अर्थ चिंतन, अभिव्यक्ति, कार्य करने की स्वतंत्रता से हैं।
अनुच्छेद 19(1) इसमें छह प्रकार की स्वतंत्रता है- पूर्व में 7 थीं यह इस प्रकार हैं -
  • अनुच्छेद-19(1)(क)-वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद
  • अनुच्छेद-19(1)(ख)-शांतिपूर्ण व अनिरुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता 
  • अनुच्छेद-19(1)(ग)-संगम एवं संघ समिति बनाने की स्वतंत्रता 
  • अनुच्छेद-19(1)घ)-स्वतंत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता 
  • अनुच्छेद-19(1)(ड़)-भारत के किसी भाग में निवास करने की स्वतंत्रता 
  • अनुच्छेद-19(1)च)-संपत्ति की स्वतंत्रता 44 वें संविधान संशोधन द्वारा हटा दिया गया 
  • अनुच्छेद-19(1)(छ)-आजीविका, व्यापार, कारोबार करने की स्वतंत्रता 


सूचना का अधिकार-(RTI)
सूचना का अधिकार एक विधिक अधिकार है। इसे 2005 में क़ानूनी रूप दिया गया।


जानने का अधिकार
अनुच्छेद 19(1)(क) में शामिल


19(1)(क) के अंतर्गत निम्न स्वतंत्रताएँ आती हैं -

  1. प्रेस की स्वतंत्रता 
  2. जानने का अधिकार 
  3. राष्ट्रीय ध्वज फहराना 
  4. विदेश भ्रमण का अधिकार 
  5. चुप रहने का अधिकार 
  6. एकांतता का अधिकार 
  7. प्रायोजित बंद असंवैधानिक 
  8. विचारों का प्रचार करने की स्वतंत्रता


अनुच्छेद 19(2)- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का निर्बंधन 
इसके अंतर्गत मानहानि आता है।



अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में सरक्षण-अनुच्छेद-20

इसमें तीन प्रकार के संरक्षण है 
  • 20(1) कार्योत्तर विधियों से संरक्षण 
  • 20(2) दोहरे दंड से संरक्षण 
  • 20(3) स्वयं के विरुद्ध साक्षी होने से संरक्षण 


प्राण व दैहिक स्वतंत्रता-अनुच्छेद-21

यह अनुच्छेद जीवन की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। इसमें निम्न अधिकारों का संरक्षण किया गया है- 
  1. मानवीय गरिमा व सभ्यता के साथ जीवन यापन 
  2. कर्मकारों को न्यूनतम मजदूरी 
  3. भोजन पाने का अधिकार 
  4. आजीविका का अधिकार 
  5. जीविकोपार्जन का अधिकार 
  6. सड़क पर व्यापार करने का अधिकार 
  7. स्वास्थ्य का अधिकार 
  8. चिकित्सा पाने का अधिकार 
  9. एकांतता का अधिकार 
  10. आश्रय पाने का अधिकार 
  11. शुद्ध जल व वायु पाने का अधिकार 
  12. ध्वनि प्रदूषण रहित वातावरण का अधिकार 
  13. गर्भधारण करने या न करने का अधिकार 
  14. कर्ज न चुकाने पर जेल नहीं 
  15. इसमें मरने का अधिकार शामिल नहीं है।

शिक्षा का अधिकार-अनुच्छेद-21(क)

86 वा सविंधान संशोधन 2002 द्वारा इसको जोड़ा गया। इसमें 6 से 14 वर्ष के बालकों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करने का अधिकार है।

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गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण-अनुच्छेद-22

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