Sociology In Hindi-प्रमुख सामाजिक प्रक्रियाएँ-सहयोग,संघर्ष-Definition of Co-operation,Definitions of Conflict

Sociology In Hindi-प्रमुख सामाजिक प्रक्रियाएँ–सहयोग,संघर्ष

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Definition of Co-operation,Definitions of Conflict in Hindi
Sociology Notes in Hindi

Sociology for UPPCS Lecturer Exam 2021
and PGT Sociology In Hindi

सहयोग (Co-operation)
सामाजिक होने के नाते मनुष्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समाज में सहयोग से काम लेता है. सहयोग की परिभाषा करते हुए मेरिल और एल्ड्रीज ने कहा- “सामाजिक अन्तःक्रिया के उस रूप को सहयोग कहते हैं जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति एक सामान्य ध्येय की पूर्ति के लिए साथ-साथ कार्य करते हैं."

सहयोग की परिभाषा (Definition of Co-operation)

'सहयोग वह प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति अथवा समूह न्यूनाधिक संगठित रूप से अपने प्रयत्नों को सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संयुक्त करते हैं.'

1. मेरिल और एलड्रिज के अनुसार- “सामाजिक अन्तःक्रिया (Interaction) के उस रूप को सहयोग कहते हैं, जिसमें दो या दो से अधिक एक सामान्य ध्येय की पूर्ति के लिए साथ-साथ कार्य करते हैं.'

2. किंग्सले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार“एक सहयोगी समूह वह है जो ऐसे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिल-जुलकर कार्य करता है जिसको वह सब चाहते

3. फेयरचाइल्ड (Fair Child) के अनुसार—“सहयोग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अनेक व्यक्ति अथवा समूह सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साथ-साथ कार्य करते हैं."

4. ग्रीन के अनुसार—“सहयोग दो या अधिक व्यक्तियों के किसी कार्य की या किसी उद्देश्य, जोकि समान रूप से इच्छित होता है, पर पहुँचने के निरन्तर एवं सार्वजनिक प्रयत्न को कहते हैं."

जॉर्ज सिमेल ने संघर्ष की अवधारणा को सकारात्मक स्वरूप दिया है। मार्क्स की भाँति सिमेल का यह विश्वास है कि संघर्ष एक प्रकार से एकीकृत पद्धति है. सिमेल के मतानुसार एक ओर संघर्ष कुछ सम्बन्धों को तोड़ता है तो दूसरी ओर समाज की एकता को स्थिर करता है.


उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सहयोग दो या दो से अधिक व्यक्तियों या समूहों के बीच होने वाली एक विशेष अन्तःक्रिया है. इस अन्तःक्रिया का आधार किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिलकर प्रयत्न करना है. इस प्रकार सहयोग की प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्व (Elements) अनिवार्य रूप से होते हैं-

  1. पारस्परिकता अर्थात् एक-दूसरे के प्रति जागरूकता.
  2. समान लक्ष्य.
  3. सहयोग के लाभ के विषय में चेतना.
  4. साथ काम करने और उससे प्राप्त प्रतिफल में भागीदार होने की भावना.
  5. कार्य सम्पादित करने की अपेक्षित कुशलता.

सहयोग की प्रकृति (Nature of Co-operation)

सहयोग एक निरन्तर प्रक्रिया है. हमारा जीवन ही सहयोग पर निर्भर करता है. मनुष्य जन्म, पालन-पोषण से लेकर मनुष्य की सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताएँ, जैसे—आवास, वस्त्र, भोजन आदि सभी सहयोग पर निर्भर हैं. यदि समाज के विभिन्न अंगों में सहयोग की भावना न हो तो समाज का कार्य नहीं चल सकता.

सहयोग के प्रकार (Types of Co-operation)-सहयोग के निम्नलिखित प्रकार हैं

1. ग्रीन का वर्गीकरण-ग्रीन के अनुसार सहयोग तीन प्रकार का होता है-

(i) प्राथमिक सहयोग (Primary Co-operation)-प्राथमिक सहयोग वह है जिसमें व्यक्ति समाज के उद्देश्य को अपना उद्देश्य समझने लगता है और उसी के अनुरूप कार्य करने लगता है. यहाँ व्यक्तिगत स्वार्थ का कोई स्थान नहीं. यह सहयोग प्राथमिक समूहों की विशेषता है.

(ii) द्वैतीयक सहयोग (Secondary Co-operation)-इस प्रकार के सहयोग में व्यक्ति समूह के साथ सहयोग अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए करता है. श्रम-विभाजन की प्रक्रिया द्वैतीयक सहयोग है.

(iii) व्यवस्थापन (Accommodation)—व्यवस्थापन द्वारा भी सहयोग किया जा सकता है. ऐसे सहयोग को ग्रीन तृतीयक सहयोग की संज्ञा देते हैं.




2. ऑगबर्न और निमकॉफ का वर्गीकरण (Ogburn and Nimkoff)-ऑगबर्न और निमकॉफ ने वर्गीकरण के तीन प्रकारों का उल्लेख किया-

(i) सामान्य सहयोग (Common Co-operation)- जब हम समाज में एकत्रित होकर एक दूसरे के लिए कार्य करते हैं तो यह सामान्य सहयोग है.

(ii) मित्रवत सहयोग (Companionable Co-opera- tion)—जब मित्रों या रिश्तेदारों के कार्यों में सहयोग देते हैं, तो इसे मित्रवत सहयोग कहते हैं.

(iii) विभिन्न श्रमों का एकीकरण (Integration of differentiated labour)—जहाँ किसी बड़े कार्य की पूर्ति में विभिन्न लोगों के सहयोग की आवश्यकता होती है जैसेएक बाँध के निर्माण के लिए श्रमिक से लेकर इंजीनियर तक का सहयोग आवश्यक है.


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संघर्ष (Conflict)
संघर्ष को समाज के एक केन्द्रीय तथ्य के रूप में स्वीकार किया गया. प्रत्येक समाज में संघर्ष पाए जाते हैं और व्यक्तियों को उनका सामना करना पड़ता है. प्राचीन ग्रीस विचारकों में 'हेराक्लाइटस' (Heraclitus) से लेकर 'सोफिस्टस' (Sophists) तक ने संघर्ष को एक प्राथमिक तथ्य (Social fact) माना है. 'पॉलीबियस' (Polybius) के लिए, संघर्ष, राजनीतिक संस्थाओं के उद्विकास में सार्वभौमिक तथ्य था.

संघर्ष की परिभाषाएँ (Definitions of Conflict)-भिन्न-भिन्न विद्वानों ने संघर्ष की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं

1. ग्रीन (Green) के अनुसार—“संघर्ष दूसरे या दूसरों की इच्छा के विरोध, प्रतिकार या बलपूर्वक रोकने के विचारपूर्वक प्रयत्न को कहते हैं."

2. गिलिन और गिलिन (Gillian and Gillian) के अनुसार–“संघर्ष वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति अपने विरोधी को हिंसा के भय द्वारा प्रत्यक्ष आह्वान करके करते हैं."

3. मैकाइवर और पेज (MacIvar and Page) के अनुसार— “सामाजिक संघर्ष में वे सभी क्रिया-कलाप सम्मिलित हैं जिनमें मनुष्य किसी भी उद्देश्य के लिए एकदूसरे के विरुद्ध लड़ते हैं."


उपर्युक्त परिभाषाओं द्वारा संघर्ष की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं

1. संघर्ष की प्रक्रिया का मुख्य और अन्तिम ध्येय विरोध, आक्रामकता और हिंसा के द्वारा अपने विरोधी पक्ष को सीमित, नियन्त्रित अथवा पूर्णतः समाप्त करना होता है.

2. व्यक्तिगत या समूहगत हितों के टकराव के चरमोत्कर्ष पर ही संघर्ष की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है.

3. संघर्ष एक चेतन एवं वैयक्तिक प्रक्रिया है. संघर्ष में व्यक्ति या समूह अपने उद्देश्य की अपेक्षा प्रतिपक्ष पर ही अधिक ध्यान केन्द्रित करता है.


4. संघर्ष की प्रकृति अस्थायी होती है, संघर्ष निरन्तर नहीं चल सकता है. 

5. संघर्ष में सामाजिक कानूनों की पूर्ण अवहेलना की जाती है. प्रतिस्पर्धा के विपरीत इसमें कोई नियम नहीं होता है.

6. संघर्ष में सहयोग के तत्व भी अन्तर्निहित होते हैं. बाह्य-समूहों से संघर्ष की स्थिति में अन्तर्समूहों में आन्तरिक सहयोग का बढ़ा हुआ रूप स्पष्टतः दिखाई देता है.

7. संघर्ष के परिणाम अक्सर गम्भीर होते हैं, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में संघर्ष सामाजिक संगठन के एकीकरण में सहायक भी होता है.

8. संघर्ष एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है.


संघर्ष की प्रकृति (Nature of Conflict)

संघर्ष प्रतियोगिता के समान निरन्तर प्रक्रिया नहीं है. इसका ध्यान उद्देश्य की अपेक्षा व्यक्ति पर अधिक रहता है. इसकी प्रकृति के तत्व निम्नलिखित हैं

1. संघर्ष चेतन प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति का संघर्ष होता है. वह उसके प्रति चेतन और सजग रहता है.

2. संघर्ष वैयक्तिक प्रक्रिया है—संघर्ष उद्देश्य की अपेक्षा व्यक्ति पर अधिक ध्यान देता है.

3. संघर्ष अनिरन्तर प्रक्रिया है— संघर्ष निरन्तर नहीं चलता रहता. एक बार संघर्ष करने के लिए बहुत बड़ी शक्ति का संचय करना पड़ता है अतः संघर्ष अनिरन्तर है.

4. संघर्ष सार्वभौमिक प्रक्रिया है—मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि किसी न किसी रूप में संघर्ष प्रायः सभी व्यक्तियों में पाया जाता है.


संघर्ष के प्रकार (Types of Conflict)

संघर्ष के दो प्रकार हैं

1. वैयक्तिक संघर्ष (Individual conflict)

2. सामूहिक संघर्ष (Group conflict)

वैयक्तिक संघर्ष-वैयक्तिक संघर्ष में व्यक्ति संघर्ष में लगे रहते हैं. मुख्य रूप से यह संघर्ष व्यक्ति और व्यक्ति के बीच में होता है.

सामूहिक संघर्ष-इस संघर्ष में व्यक्ति के स्थान पर समूह संघर्षरत रहता है. वर्ग संघर्ष, राजनीतिक और अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष इसके उदाहरण हैं. दो देशों का संघर्ष भी सामूहिक संघर्ष के अन्तर्गत आता है.


लेविस कोजर (Lewis Coser) ने (1) वास्तविक (Realistic) और (2) अवास्तविक (Non-realistic) दो प्रकार के संघर्ष का उल्लेख किया है.

मैकाइवर और पेज ने संघर्ष के दो प्रकार (1) प्रत्यक्ष संघर्ष (Direct conflict) और (2) अप्रत्यक्ष (Indirect conflict) संघर्ष बताए हैं.

किंग्सले डेविस ने संघर्ष के दो स्वरूपों (1) आंशिक संघर्ष (Partial conflict), (2) पूर्ण संघर्ष (Total conflict) का उल्लेख किया है.


संघर्ष के स्वरूप (Forms of Conflict)

गिलिन एवं गिलिन ने संघर्ष के निम्नलिखित स्वरूपों का उल्लेख किया है

1. वैयक्तिक संघर्ष-जब संघर्षशील व्यक्तियों में व्यक्तिगत रूप से घृणा होती है तथा वे अपने स्वयं के स्वार्थों के लिए अन्य को शारीरिक हानि तक पहुँचाने को तैयार हो जाते हैं इस प्रकार के संघर्ष में कोई निरन्तरता नहीं होती.

2. प्रजातीय संघर्ष—यह संघर्ष समूहगत होता है. प्रजातीय संघर्ष का कारण शारीरिक विशेषताओं की भिन्नता को माना गया है, परन्तु इसके साथ सांस्कृतिक भावना भी जुड़ी हुई है और आर्थिक संकट भी. नीग्रो और श्वेत प्रजातियों के मध्य काफी लम्बे समय से संघर्ष चलता रहा है.

3. वर्ग संघर्ष-कार्ल मार्क्स के अनुसार, “आज तक अस्तित्व में रहे समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है" सम्पूर्ण समाज का इतिहास वर्ग-संघर्ष में ढूँढ़ा जा सकता है. आज श्रमिकों एवं मिल मालिकों, मालिक और नौकर, धनवान और निर्धन आदि के मध्य वर्ग संघर्ष व्याप्त है.

4. राजनीतिक संघर्ष—ये संघर्ष दो प्रकार के होते हैं- (1) अन्तःदेशीय (Intranational) और अन्तःर्देशीय (International). अन्तःदेशीय संघर्ष, एक ही देश के अनेक राजनीतिक दलों के बीच होता है, जबकि अन्तर्देशीय संघर्ष में एक से अधिक देश होते हैं. युद्ध (War) इस प्रकार के संघर्ष का एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है.


संघर्ष के प्रकार (Causes of Conflict)

संघर्ष के कारणों के सम्बन्ध में कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति में दूसरे व्यक्ति पर प्रभुत्व स्थापित करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति ही व्यक्ति को संघर्ष के लिए प्रेरित करती है. समाजशास्त्रीय सन्दर्भ में गिलिन एवं गिलिन ने संघर्ष के निम्नलिखित चार मुख्य कारणों का उल्लेख किया है

1. व्यक्तिगत भिन्नताएँ (Individual Difference)-समाज में सभी व्यक्ति एकसमान नहीं होते हैं. उनमें विभिन्न आधारों पर कुछ भिन्नताएँ होती हैं. जैसे—जैविकीय भिन्नता, मानसिक भिन्नता, प्रस्थितिगत भिन्नता' क्षमता एवं कुशलता में भिन्नता आदि. इन व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर व्यक्तियों के मूल्य एवं आदर्श में जो अन्तर होता है वे ही संघर्ष को जन्म देने वाले मूल कारण हैं.

2. सांस्कृतिक भिन्नता (Cultural Difference)-व्यक्ति का व्यक्तित्व मुख्य रूप से उस सांस्कृति की ही देन होती है जिसमें व्यक्ति अपना सामान्य जन-जीवन व्यतीत करता है. सांस्कृतिक विशेषताओं में भिन्नता होने के कारण ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में भी भिन्नता आती है जो संघर्ष को जन्म देती है. सांस्कृतिक श्रेष्ठता की भावना भी परस्पर विरोधी संस्कृति में संघर्ष उत्पन्न करते हैं.

3. विरोधी स्वार्थ (Opposite Interest)—यह एक प्रकार से संघर्ष का तात्कालिक कारण है. दो व्यक्ति या समूहों के परस्पर हितों या स्वार्थों में टकराव की स्थिति में उनके हितों के शोषण की सम्भावना बनी रहती है. इसलिए व्यक्ति या समूह अपने हितों की रक्षा के लिए संघर्ष को एक साधन के रूप में चुन लेते हैं.

4. सामाजिक परिवर्तन (Social Change)—सामूहिक संघर्षों का एक मुख्य परिणाम सामाजिक परिवर्तन होता है, लेकिन प्रत्येक सामाजिक परिवर्तन समाज में कुछ संघर्ष को भी जन्म देता है. प्रत्येक परिवर्तन से समाज में सामाजिक सम्बन्ध या व्यवहार के कुछ नए प्रतिमान उभरते हैं. कुछ व्यक्ति पुराने प्रतिमान के पक्षधर होते हैं, तो कुछ नए प्रतिमानों के समर्थक बन जाते हैं. फलतः उनमें पुरानी एवं नई व्यवस्था को लेकर कुछ मतभेद पनप जाते हैं जो अन्ततः संघर्षों को जन्म देता है.

संघर्ष के परिणाम (Effects of Conflict)

असहयोगी प्रक्रिया के रूप में संघर्ष को सामान्यतः बुरे परिणामों वाली प्रक्रिया ही माना जाता है, लेकिन संघर्ष के विभिन्न सिद्धान्तों में हम देख चुके हैं कि संघर्ष सदैव समाज विरोधी नहीं होता है. गिलिन एवं गिलिन ने संघर्ष के निम्नलिखित परिणामों का उल्लेख किया है

1. समूह एकता में बाधक-यदि किसी समूह के अन्दर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाए, तो ऐसे में समूह की एकता तथा सुदृढ़ता भंग होने लगती है. समूह के सदस्य एक-दूसरे पर ही कीचड़ उछालने लगते हैं जिससे समूह की संस्कृति ही छिन्न-भिन्न होने लगती है.

2. व्यक्तित्व पर प्रभाव-संघर्ष में व्यक्ति का व्यक्तित्व अस्थिर हो जाता है. उसमें मानसिक दुविधा की स्थिति उभरने लगती है. उसके सामने यह चुनौती होती है कि किसी पक्ष के समर्थन में दृढ़ता से साथ दे अथवा तटस्थ व्यक्ति की भूमिका निभाए. किसी व्यक्ति की संघर्ष के प्रति सहानुभूति की मात्रात्मक विभिन्नता ही उसके व्यक्तित्व का स्वरूप निर्धारित करती है.

3. संसाधनों की क्षति—संघर्ष का एक परिणाम जन-धन की क्षति होना है. संघर्ष जितने बड़े स्तर पर होगा जन-धन का नुकसान भी उतने ही बड़े पैमाने पर होगा. सामूहिक संघर्ष के रूप में दो विश्व युद्धों से होने वाली अपार जन-धन की क्षति से हम सभी परिचित हैं. वैयक्तिक संघर्ष की स्थिति में भी लोग अपनी आय के बड़े भाग का व्यय मुकदमेबाजी, आपराधिक तत्वों के सहयोग आदि जैसे अनावश्यक कार्यों

4. समझौता एवं समायोजन संघर्ष निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया नहीं है. कुछ अवधि के पश्चात् इसका समाप्त होना निश्चित होता है. संघर्षरत् पक्षों में सहयोग होने पर समायोजन एवं सात्मीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है. यदि दोनों पक्ष समान शक्ति एवं संसाधन वाले होंगे, तो उनमें सात्मीकरण की प्रक्रिया फलीभूत होगी, लेकिन यदि दोनों पक्ष असमान शक्ति एवं संसाधन वाले होंगे, तो उनमें दबाव के रूप में समायोजन की प्रक्रिया ही फलीभूत होगी. इनमें अधीनता का सम्बन्ध ही विकसित होता है, जो अस्थायी होता है.

5. समूह-एकता में सुदृढ़ता—कुछ समाजशास्त्रियों ने संघर्ष के प्रकार्यात्मक परिणाम के रूप में इस तथ्य पर सबसे अधिक बल दिया है कि संघर्ष से समूह एकता में सुदृढ़ता आती है. वास्तव में, यदि संघर्ष समूह के अन्दर हो, तो इससे समूह एकता विखण्डित होता है, लेकिन यदि संघर्ष दो समूहों में हो तो समूह की आन्तरिक एकता सुदृढ़ अवश्य होती है.

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